स्वतंत्रता दिवस पर संक्षिप्त एवं सरल निबंध – 15 August Independence Day Essay in Hindi, Long and Short Essay on Independence Day of India in Hindi, 15 August Speech in Hindi, 15 अगस्त भाषण 2019

स्वतंत्रता दिवस पर भाषण
वंदेमातरम् ! जैसा की आप सब को ज्ञात है स्वतंत्रता दिवस भारत का एक महान, गौरवशाली और एतिहासिक पर्व है। इतिहास गवाह है प्रत्येक वस्तु या घटना का एक इतिहास एवं कहानी होती है। स्वतंत्रता दिवस के इस ऐतिहासिक क्षण के पीछे भी अनेकों देशभक्तों के बलिदान की कहानी हैं।
दरअसल हमारा देश भारत सदियों से परतंत्रता की बेडियों में जकड़ा हुआ था । अंग्रेजों ने फूट डालो और शासन करो की नीति अपनाकर न केवल भारत में अपने पैर जमा रखे थे बल्कि उन्होंने भारतियों को लूटने और उनपर अत्याचार करने में किसी प्रकार की कमी नहीं रखी थी। अपने शासनकाल में अंग्रेजों ने इस देश को जर्जर तथा खोखला बना दिया। यहाँ के लोग उनके अत्याचार तथा शोषण के शिकार होते रहे।
इन अत्याचारों से स्वतंत्रता पाने की भारतियों की लालशा धीरे – धीरे जोर पकड़ती गयी, जिसके परिणामस्वरूप 1857 ई. में यह प्रथम स्वधीनता संग्राम का भीषण रूप लेकर फूट पड़ा। यदि कुछ गलतियाँ न हुई होती तो हमारा देश 1857 में ही आजाद हो गया होता। 1857 के संघर्ष को और उस संघर्ष में अपने प्राणों का बलिदान देने वाले देशभक्तों को भूलाया नहीं जा सकता।
इतिहास साक्षी है कि इस स्वाधीनता संग्राम में झांसी की रानी, तांत्या टोपे, नाना साहब, मंगल पाण्डे, अहमदशाह आदि देश प्रेमियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध डटकर युद्ध किया। किन्तु क्रान्ति समय पूर्व होने के कारण स्वतंत्रता नहीं मिल सकी। लेकिन देशभक्तों ने इससे एक बड़ा सबक जरुर लिया कि हमें योजनाबद्ध ढंग से संगठित होकर अंग्रेजों से मुकाबला करना होगा। उन्होंने इस नीति के खिलाफ एकजुट होकर अपनी एकता का परिचय आन्दोलन के रूप में देना प्रारम्भ किया।
1885 ई. में कांग्रेस की स्थापना के साथ एक बार पुनः स्वतंत्रता संग्राम की क्रांति अहिंसात्मक आन्दोलन के रूप में आरम्भ हो गई। इस स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन से देश की सुषुप्त जनता जाग उठी। कांग्रेस की नीति प्रारंभ में उदार रही। उदारवादी नेताओं में दादाभाई नारौजी, फिरोजशाह, गोखले, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी प्रमुख थे। ये लोग अपनी मांग मनवाने हेतु अंग्रेजों से प्रार्थना करते और अपने शिष्ट मण्डल भेजते।
आगे चलकर कांग्रेस में दो दल बन गए । एक नरम दल और दूसरा गरम दल । गरम दल के नेता बाल गंगाधर तिलक ने स्वतंत्रता के लिए शंखनाद किया कि “स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा । ” गणेशोत्सव के माध्यम से उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन में जान फूंक दी और सम्पूर्ण देश को एक सूत्र में बांध दिया । स्वतंत्रता को पाने के लिए सहस्त्रों ने अपने को उत्सर्ग कर दिया ।
1920 में गांधीजी जी द्वारा असहयोग आन्दोलन चलाया गया जिसमें लाखो लोगों को जेल में ठूस दिया गया । इस आन्दोलन में नौजवानों ने बढ़ – चढ़ कर हिस्सा लिया । प. जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल और राजेंद्र प्रसाद जैसे देश भक्त हिदुस्तान को ब्रिटिश शासन से आजाद कराने के लिए राष्ट्रीय क्रांति के रंगमंच पर उतर गये ।
31 दिसम्बर 1929 की रात को 12 बजे लाहौर में रावी नदी के किनारे हुए अधिवेशन ने क्रांति की ज्वाला को और भी तीव्र कर दिया जब इस अधिवेशन में राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज की घोषणा कर दी, और रात को ही जुलूस निकालकर अधिवेशन स्थल लाजपत नगर का झण्डा फहरा दिया ।
लाहौर अधिवेशन में यह भी घोषणा कर दी गई कि, प्रतिवर्ष 26 जनवरी को पूर्ण स्वराज्य की घोषणा को दोहराया जायेगा । घोषणा के बाद अग्रेजों का भारतियों के प्रति रूप और विध्वंसक हो गया । उन्होंने क्रांतिकारी भारतियों को रोकने के लिए दमन चक्र चलाया लेकिन देश के रणबांकुरो ने आजादी की लड़ाई लड़ते हुए अगले वर्ष 16 जनवरी 1930 में उसी पूर्ण स्वराज्य की घोषणा के तहत दिल्ली के कंपनी बाग़ में पहला स्वतंत्रता दिवस मनाया ।
पहले स्वतंत्रता दिवस पर प्रात: आठ बजे मौलाना आरिफ द्वारा झण्डा फहराने के बाद बहन सत्यवती, श्रीमती सोलादत्त एवं श्रीमती कौशल्या देवी ने केसरिया साड़ी पहनकर राष्ट्रीय गीत वंदेमातरम् गाया । डॉ. अंसारी ने प्रतिज्ञा पत्र दोहराया । तिरंगा हाथ में लेकर एक विशाल जुलूस निकाला गया और जनसभा की गई । इसके बाद प्रतिवर्ष 26 जनवरी को Independence Day के रूप में मनाया जाने लगा और देश की आजादी के बाद स्वतंत्रता दिवस 15 August को मनाया जाने लगा ।
इसी दौरान दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत हो गई । दूसरे विश्व युद्ध के आरम्भ होने पर अगेंजी सरकार ने अपनी ओर से ही भारत के महायुद्ध में सम्मिलित होने की घोषणा कर दी, और भारतियों से पूछा तक नहीं । जब कांग्रेस ने अंग्रेज सरकार से भारतीय स्वतंत्रता के ध्येय को स्वीकार करने के लिए लिए कहा तो कोई भी संतोषप्रद उत्तर नहीं प्राप्त हुआ ।
गांधी जी के सफल नेतृत्व में व्यक्तिगत अवज्ञा – आन्दोलन चलाया गया । इस स्वतंत्रता आन्दोलन में देश के अनेकानेक नर – नारियों ने सहर्ष सक्रिय भाग लिया । लेकिन अब तक दूसरे महायुद्ध का खतरा बढ़ते हुए, भारत की पूर्वी सीमा तक पहुंच चुका था ।
गांधी जी को धीरे – धीरे यह विश्वास हो गया था कि अंग्रेजों के इस देश में रहने से भारतीय समस्याओं की जटिलता कम नहीं हो सकती । उन्होंने कहा कि “भारत और ब्रिटेन की रक्षा इसी में है कि अग्रेंज ठीक समय में भारत से अनुशासित ढंग से हट जायं” और इसी दृष्टि से ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ का प्रस्ताव लोगों के समक्ष रखा ।
भारत छोड़ो आंदोलन हमारे देश के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ । प्रस्ताव में आन्दोलन के सम्बन्ध में यह स्पष्ट कहा गया था – “ कमेटी भारत की स्वाधीनता और स्वतंत्रता के अविच्छेद अधिकार का समर्थन करने के उद्देश्य से अहिंसात्मक प्रणाली से और अधिक से अधिक विस्तृत पैमाने पर एक विशाल सत्याग्रह चालू करने की स्वीकृति देने का निश्चय करती है । ” और गांधी जी ने कहा अब अग्रेंजो से बातचीत के लिए कोई अवकाश नहीं है, अब और अवसर देने का प्रश्न ही नहीं उठता । तो यह एक खुला विद्रोह था और यही पर उन्होंने करो या मरो का आह्वान किया ।
‘अखिल भारतीय कांग्रेस समिति’ ने बम्बई जो वर्तमान में मुंबई है में 8 अगस्त 1942 को प्रस्ताव पास करके आन्दोलन का सहर्ष समर्थन किया । 9 अगस्त 1942 को स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए विद्रोह की आग और भड़क उठी, जब गांधी जी ने खुले शब्दों में अंगेजों के विरुद्ध “भारत छोड़ो” आन्दोलन चला दिया ।
विद्रोह के कारण सारे नेता बम्बई में ही 9 अगस्त की सुबह कैद कर लिए गए । अग्रेंजी शासन को लगा कि नेताओं को कैद कर लेने से क्रांति की चिंगारी बुझ जाएगी किन्तु इसका परिणाम उल्टा हुआ ।
नेताओं की गिरफ्तारी के बाद सारे देश में विद्रोह की आग और भी तेज हो गई । क्रांतिकारी की ज्वाला भड़क उठी । अंग्रेजों द्वारा दमन चक्र चलाकर सैकड़ो लोगों की नृशंस हत्याये कर दी गई । सहस्रों नर – नारियों को बिना मुकदमा चलाएँ जेल में डाल दिया गया । इस बीच नेताओं द्वारा अनेक बैठके की गई । हर साल 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस पर भाषण व उपदेश दिए गए लेकिन भारत को वास्तविक आजादी 15 अगस्त 1947 को मिली ।
15 August स्वतंत्रता दिवस के मुख्य आकर्षण एवं समारोह
लगभग दो सौ वर्ष के लम्बे संघर्ष के बाद 15 अगस्त 1947, को अंग्रेजों के लौहपाश से भारत आजाद हुआ, किन्तु यह स्वतंत्रता देश – विभाजन के रूप में मिली । देश का 1/3 भाग पाकिस्तान के अन्तर्गत चला गया । देश के लाखों लोग बेघर हो गए । माँ – बहनों का शीलहरण और नरसंहार हुए, लेकिन तब भी हमारें आंसुओं से भरे चेहरों ने 15 August को स्वतंत्रता दिवस का स्वागत किया । स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जी ने लाल किले पर देश के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा को फहराया ।

आज आजादी का यह स्वर्णिम दिन अनेक क्रांतिकारियों के बलिदान स्वरूप देखने को मिला है । सभी क्रांतिकारियों एवं शहीदों के नाम गिनाना तो सम्भव नहीं है, किन्तु कुछ शहीदों के नाम से बच्चा – बच्चा अवगत है । यथा – भगत सिंह, सुखदेव, चन्द्रशेखर आजाद, राजगुरु, लाला लाजपत राय, सुभाषचंद्र बोस आदि ।
आज 15 अगस्त के दिन अपने इन्हीं बलिदानी वीरों का स्मरण करने का दिन है । देशभक्ति का जज्बा जगाने का दिन है । विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन कर जन जागृति करने का मंगल अवसर है । और इसलिए भारतवर्ष वर्ष के सभी देशवासी चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या देश के किसी भी क्षेत्र का रहने वाला हो, सभी लोगों को 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस बहुत धूमधाम से मनाना चाहिए ।
तो चलिए हम सब मिलकर इस स्वतंत्रता दिवस पर संकल्प लेते है एक स्वच्छ, भ्रष्टाचार मुक्त, आतंकबाद मुक्त, सम्प्रदायवाद मुक्त और जातिवाद मुक्त भारत के निर्माण का । हम सब मिलकर मन, कर्म और वचन से कंधे से कंधा मिलाकर एक नए भारत का निर्माण करें, जिसपर हमारे अमर स्वतंत्रता सेनानियों को भी गर्व हो । जय हिन्द जय भारत।
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दोस्तों ! अब मैं अपनी लेखनी को यहीं विराम देती हूँ । उम्मीद है ये भाषण आपके लिए जरुर प्रेरणास्रोत साबित होगें । और गर आपको इनमें कोई त्रुटी नजर आयी हो या इससे संबंधित कोई सुझाव हो तो वो भी आमंत्रित हैं। आप अपने सुझाव को इस लिंक Facebook Page Facebook Page के जरिये भी हमसे साझा कर सकते है। और हाँ हमारा free email subscription जरुर ले ताकि मैं अपने future posts सीधे आपके inbox में भेज सकूं। धन्यवाद!
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Bahut accha lekh hai.