महिला सशक्तिकरण (नारी शक्ति) पर निबंध – Women Empowerment Essay in Hindi
Essay on Women Power (Women Empowerment) in Hindi : नारी विश्व की चेतना है, माया है, ममता है, और मुक्ति है। वह समाज की वास्तविक वास्तुकार होती है। दुसरे शब्दों में कहे तो नारी घर की लक्ष्मी है यानि धन एवं आशीषों की वर्षा। इतिहास गवाह है कि नारी ने हमेशा से परिवार संचालन का उत्तरदायित्व सम्भालते हुए समाज निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हमारे आदि – ग्रंथों में नारी को गुरुतर मानते हुए यहाँ तक घोषित किया गया है – “यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता। ” अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते है।
लेकिन विडम्बना तो देखिए नारी में इतनी शक्ति होने के बावजूद भी उसके सशक्तिकरण की अत्यंत आवश्यकता महसूस हो रही है। नारी की इस वर्तमान स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है ? क्या वह खुद या कोई और ? बरहाल इस वक्त महिलाओं के विकास और उसके सशक्तिकरण की अत्यन्त आवश्यकता है । दुनिया भर के सभी देशों ने भी महिला उत्थान को एक महत्वपूर्ण विषय माना है। इसलिए विश्व भर में 8 मार्च को “अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस” महिलाओं को समर्पित एक विशेष दिवस के रूप में मनाया जाता है।
महिला सशक्तिकरण का अर्थ – Meaning of women empowerment in hindi
स्त्री को सृजन की शक्ति माना जाता है। इस सृजन की शक्ति को विकसित-परिष्कृति कर उसे सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय, विचार, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, अवसर की समानता का सुअवसर प्रदान करना ही नारी सशक्तिकरण का आशय है।

महिला उत्थान में महिला सशक्तिकरण की भूमिका व महत्व
महिला सशक्तिकरण के बिना देश व समाज में नारी को असली स्थान नहीं मिल सकता, जिसकी वह हमेशा से हकदार रही है। महिला सशक्तिकरण के बिना वह सदियों पुरानी मूढ़ताओं और दुष्टताओं से लोहा नहीं ले सकती। बन्धनों से मुक्त होकर अपने निर्णय खुद नहीं ले सकती। स्त्री सशक्तिकरण के अभाव में वह इस योग्य नहीं बन सकती कि स्वयं अपनी निजी स्वतंत्रता और अपने फैसलों पर आधिकार पा सके।
महिला अधिकारों और समानता का अवसर पाने में महिला सशक्तिकरण ही अहम भूमिका निभा सकती है। क्योंकि स्त्री सशक्तिकरण महिलाओं को सिर्फ गुजारे-भत्ते के लिए ही तैयार नहीं करती बल्कि उन्हें अपने अंदर नारी चेतना को जगाने और सामाजिक अत्याचारों से मुक्ति पाने का माहौल भी तैयारी करती है।
रोमिला थापर कहती है, “पर्याप्त अधिकार और स्वतंत्रता की स्थिति से लेकर उतनी ही अधिक अधीनता की स्थिति तक उसमें व्यापक परिवर्तन आते रहे।”
भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता
भारत में महिलाओं की स्थिति ने हर युग में कई बड़े बदलाव का सामना किया है जिसमें कृषक समाजों के विकास और राज्यों के जन्म के साथ नारी की स्थिति में निर्णायक गिरावट आना भी एक है। इसमें हिन्दू समाज में जाति – सोपान नाम का केंद्रीय संगठनकारी सिद्धांत पुरुष प्रधान की विचारधारा की मुख्य भूमिका रही।
इस विचारधारा के कारण शूद्रों और स्त्रियों दोनों को वैदिक अनुष्ठानों से वंचित कर दिया गया। सार्वजनिक जीवन जब पुरुषों का कर्मक्षेत्र बन गया, तो स्त्रियाँ घरों तक सीमित होकर रह गई। लेकिन यदि यह जीवन का एक सच था, तो दूसरी ओर यह बात भी सच थी कि स्त्रियों का अलगाव कोई निरपवाद, सार्वभौमिक प्रथा न थी।

समय – समय पर राजनितिक, समाजिक, आर्थिक क्षेत्रों में धनी और निर्धन दोनों वर्गों की स्त्रियों की अत्यधिक सार्वजिनक सक्रियता के प्रमाण भी मिलते है। रजिया सुन्तल,अहिल्याबाई, नूरजहाँ, गुलबदन, हर्रम बेगम आदि स्त्रियों के चरित्र उदहारण स्वरुप हैं।
महिला शक्ति की सार्वजनिक सक्रियता का प्रमाण औपनिवेशिक काल में हुए 1857 के विद्रोह में भी दिखाई पड़ता है। रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल, रानी राजेश्वरी देवी,सुगरा बीबी, अदा देवी, आशा देवी गुज्जर, भगवानी देवी, रणबीरी बाल्मिकी, झलकारी बाई, अवंती बाई, महाबिरा देवी आदि वीरंगनाओं ने भाग लेकर समाज में सदैव उपेक्षित समझी जाने वाली महिलाओं की वीरता, साहस और सक्रिय भूमिका को बाहर लाकर राष्ट्र, समाज के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा प्रदान किया।
19 वी सदी में सामाजिक सुधार आंदोलन की बात करें या 20वी सदी के राष्ट्रीय स्वतंत्रता संघर्ष की, नारी ने पुरुषों के साथ भाग लेकर पुरानी मान्यताओं को दरकिनार करते हुए अपनी शक्ति का जबदस्त अहसास कराया।
आज हमारे मानस में नारी शक्ति की पहचान स्वतंत्र, जिज्ञासु और आत्मविश्वास से भरी स्त्री की तस्वीर न उभर कर एक ऐसी संघर्षशील स्त्री की तस्वीर उभरती है, जिसके घरेलू दायित्व वही के वही हैं । अब परिस्थियों की मांग है कि आत्मदया और आत्मपीडन के तार पर साधा हुआ अपने पारम्परिक स्वरूप के प्रति आक्रोश एक स्तर के बाद बंद हो ।
बीती बातों को याद करने या दोहराने से महिलाओं की स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला । देश की आधी आबादी को अब अपने सत्य से वृहत सत्य की परिधि तक जाना होगा । यह देखना होगा कि किसी भी महत्वपूर्ण क्षेत्र में महिलाओं के कार्य करने या न करने से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्या विशेष फर्क पड़ेगा । लेकिन स्त्री सशक्तिकरण का सारा रास्ता एक लम्बी छलांग लगाकर एक बार में पार नहीं किया जा सकता, उसे कदम – कदम पर चलकर ही पार किया जा सकता है ।
Also Read : नारी का विगत, वर्तमान और संभावित स्वरूप
आज सम्पूर्ण व्यवस्था में जिस आमूल रूप से स्त्री सम्बन्धी मुद्दों के पुनर्मूल्यांकन और विश्लेषण की जरुरत है, उस निर्णय के अधिकार को पुरुष व्यवस्था ने अभी तक अपने पास रखा है । स्त्री की अस्मिता का संघर्ष दोहरे स्तरों पर है क्योंकि अस्मिता का संघर्ष केवल अपने होने अपनी शक्ति की पहचान करने मात्र से नहीं जुड़ा है बल्कि अस्मिता का संघर्ष और विकास का मुद्दा एक दूसरे से जुड़ा हुआ है ।
वर्तमान में महिलाएँ उत्पादन एवं पुनरुत्पादन के कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं फिर भी द्रुत आर्थिक विकास और सामाजिक परिवर्तनों में महिलाओं का योगदान अदृश्य तथा मान्यता रहित रहा क्योंकि उनसे स्टीरियों टाइप प्रक्रिया और पारम्परिक भूमिका निभाने की आशा की जाती रही ।
महिलाओं की आर्थिक भूमिका की उपेक्षा की जाती रही जबकि सशक्तिकरण के लिए आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना परम आवश्यक है । और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के लिए महिलाओं का शिक्षित होना बेहद आवशयक है लेकिन भारत में आज भी महिलाओं के लिए पर्याप्त शिक्षा व्यवस्था की कमी है ।
एक शिक्षित महिला ही इस महा अभियान का नेतृत्व कर सकती है । इसके अतिरिक्त नारी का स्वास्थ्य, समाज में व्याप्त यौन हिंसा, वेश्यावृति की बढ़ती घटनाओं को रोकना कारगर उपाय है ।
आज महिलाओं को उनकी क्षमता और योग्यता के अनुसार विकास का पूर्ण अवसर प्रदान करना और नारी सशक्तिकरण राष्ट्रीय नीति को अपडेट करने की जरुरत अपने चरम पर है । साथ ही महिलाओं के प्रति लोगों की सोच में बदलाव की भी काफी आवश्यकता है ।
मनुष्य की सृष्टि में नारी पुरातन है । उसके स्थिति का समाज पर और समाज का उसकी स्थिति पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है । समाज निर्माण में मात्र पुरुष ही भाग ले और नारी को घर के पिंजरे में ही कैद रखा जाए, यह अनुचित है । इसमें नारी वर्ग को और समाज को तो हानि है ही, प्रतिबन्ध लगाने वाले पुरुष भी उस हानि से नहीं बच सकते ।
नारी चेतना रूप है । वह परिवार संचालन का उत्तरदायित्व संभालते हुए भी समाज निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है । दुनिया के किसी भी देश व समाज का विकास महिला सशक्तिकरण के अभाव में संभव नहीं है । समाज की उन्नति के लिए आज की चेतना नारी को विकास के लिए स्वच्छ और उपयुक्त पर्यावरण उपलब्ध कराना पूरी मनुष्य जाति का कर्तव्य है ।
समाज में नारी और पुरुष दोनों को एक बराबरी का दर्जा मिलाना चाहिए । जिस दिन महिला और पुरुष के बीच का भेद – भाव खत्म हो जायेगा उस दिन हमारे समाज में एक नये युग का आरम्भ हो जाएगा । लेकिन आज भी सामाजिक क्षेत्र में महिलाओं को शारीरिक और मानसिक हिंसा का सामना करना पड़ रहा है ।
भारतीय राष्ट्रीय कानून के तहत 2001 में महिलाओं के लिए “राष्ट्रीय महिला नीति” पारित की गयी । पुरुषों के समान सभी क्षेत्रों में महिलाओं को अधिकार देने के लिए कानून बनाए गए लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि महिलाओं को अधिकार देने के नाम पर “राष्ट्रीय महिला नीति” को बने 15 वर्ष से ज्यादा समय बीत गए पर आज भी महिला सशक्तिकरण नहीं हुआ । नारी सशक्तिकरण के नारे और भाषण तो दीए जाते है लेकिन हकीकत में आज समाज में महिला की हालत बेहद चिंताजनक है ।
आर्थिक और प्रौद्योगिक परिवर्तनों के बावजूद महिलाओं के प्रति हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है । यह एक विचित्र विडम्बना है कि जो महिला घर, परिवार और समाज की सुरक्षा की बुनियादी कड़ी है आज उसी के खिलाफ हिंसा होती है । सच तो यह है कि एक सभ्य समाज में महिलाओं के प्रति हिंसा किसी भी तरह स्वीकार एवं क्षमा योग्य नहीं है ।
जिस प्राचीन भारतीय संस्कृति में नारी को स्वयं शक्ति स्वरूपा कहा गया है । नारी के उसी शक्ति को और भी सशक्त बनाने के लिए महिला सशक्तिकरण मजबूत प्रयास की अत्यंत आवश्यकता है । जिससे वह सड़क से लेकर घर तक, स्कूल से लेकर दफ्तर तक हर जगह सिर उठाकर चल सके, समाज के सभी बंधनों से मुक्त होकर अपने निर्णय खुद ले सके । वह इतनी सशक्त हो कि उसकी तरफ कोई गलत नजर से देखने की हिम्मत न कर सके ।
यह सच है इस तरह के स्वस्थ्य समाज का निर्माण नारी सशक्तिकरण के द्वारा ही किया जा सकता है । इस बात को दुनिया भर के सभी देशों ने माना है और इसलिए देश के संविधान में भी महिलाओं को हर क्षेत्र में बिना किसी भेद भाव के पुरुषों के समकक्ष अधिकार दिए गए है । महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए महिला सशक्तिकरण योजना “राष्ट्रीय महिला आयोग” तथा विभिन्न राज्यों में “राज्य महिला आयोग” की स्थापना की गई है जो सुधार के लिए अनवरत प्रयासरत हैं ।
महिलाओं को मुख्य धारा में लाने के लिए हमारे देश की सरकार ने वर्ष 2001 को महिला सशक्तिकरण वर्ष के रूप में घोषित किया । यह बात बिलकुल सत्य है कि महिलाओं की आधी आबादी के हर क्षेत्र में सशक्त होने पर ही देश सशक्त होगा और सही मायने में उसका सम्पूर्ण विकास होगा ।
यद्यपि नारी का महत्व उसके त्याग, तपस्या, सेवा-भाव और समर्पण में निहित है । बिना इन भावों के नारी नारी कहाँ रह जाती है और शायद इसीलिए पुरुष को कठोर कहा गया है तथा स्त्री को कोमल । यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि नारी प्रकृति की सबसे शानदार और मजबूत रचना है । स्त्री अन्तर्जगत का उच्चतम विकास है जिसके बल पर समस्त सदाचार ठहरे हुए है । इसलिए प्रकृति ने भी उसे इतना सुंदर मनमोहक आवरण दिया है ।
रमणी रूप की स्वामिनी नारी का जीवन नि:संदेह सेवा और समर्पण का सार है । लेकिन इस समर्पण को समझने वाला सह्रदय पुरुषों की संख्या बहुत कम है । ज्यादातर पुरुष नारी की इन विशेषताओं की उपेक्षा कर उसकी कोमल भावनाओं को उसकी विवशता समझते है और इस प्रकार अपनी मानसिक संकीर्णता का परिचय देते है । यह त्रासदी आधे भाग की है । इसी आधी आबादी को आगे लाना और सशक्त बनाना महिला सशक्तिकरण का उद्देश्य है ।
हमेशा से नारी सशक्तिकरण के मार्ग में उसका शारीरिक रूप से कमजोर होना बाधक बनता रहा है । इस बात को जयशंकर प्रसाद जी ने भी महसूस कर अपनी रचना में लिखा है –
“यह आज समझ तो पाई हूँ
दुर्बलता में मैं नारी हूँ ।
अवयव की सारी कोमलता
लेकर मैं सबसे हारी हूँ ।। “
लेकिन इस सबके बावजूद नारी को जहाँ भी आर्थिक, सामाजिक, राजनितिक क्षेत्रों में पुरुषों के समान अवसर प्राप्त हुए है, वहाँ उसने अपने आप को पुरुषों के समकक्ष श्रेष्ठ साबित कर दिखाया है । आज स्त्री की छवि भले ही ‘पवित्र देवी आदरणीय’ की नहीं है लेकिन भारतीय संस्कृति के इतिहास के पन्ने पलट कर देखे तो नर और नारी को गृहस्थी की गाड़ी चलाने के लिए दो पहियों की भांति माना गया है । एक के बिना दूसरा अधूरा तथा आश्रयहीन था ।
यदि विभिन्न कालों के आधार पर भारतीय स्त्रियों की स्थिति पर दृष्टि डाले तो हम पायेंगे कि वैदिक काल में नारी पग – पग पर पुरुष की सहभागिनी हुआ करती थी । किन्तु उत्तर वैदिक युग में नारी की दशा गिरती गई । मध्यकाल आते – आते स्त्री जाति की दशा और भी दयनीय हो गई । इस काल में महिलाओं को अबला माना जाता था, जिसका जिक्र कवि मैथलीशरण ने अपनी रचना में की है –
“अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में पानी ”
पर बदलते भारतीय समाज में नारी की स्थिति भी परिवर्तनीय रही है । कभी नारी को श्रद्धा के साथ पूजा गया तो कभी दासता के बंधन में जकड़कर पशुवत व्यवहार किया गया । प्रसिद्ध लेखिका सिमोन कहती है कि –
“स्त्री की स्थिति अधीनता की है स्त्री सदियों से ठगी गई है और यदि उसने कुछ स्वतंत्रता हासिल की है तो बस उतनी ही जितनी पुरुष ने अपनी सुविधा के लिए उसे देनी चाही । ”
बदलते समय के साथ आधुनिक युग की नारी पढ़ – लिख कर स्वतंत्र है । वह अपने अधिकारों के प्रति सजग है तथा स्वयं अपना निर्णय लेती है । अब वह चारदीवारी से बाहर निकलकर देश के लिए विशेष महत्वपूर्ण कार्य करती है ।
इसका एक उदाहरण तब देखने को मिला जब वर्ष 2016 में तुर्की के इस्तांबुल में हजारों महिलाओं ने उस बिल का विरोध किया जिसमें यह प्रावधान था कि यदि किसी नाबालिक लड़की से दुष्कर्म का आरोपी उससे शादी कर लें तो उसे सजा नहीं दी जाएगी । महिलाओं के आवाज उठाने पर इस बिल को वापस ले लिया गया ।
भारत में भी ऐसी महिलाओं की कमी नहीं है जिन्होंने समाज में बदलाव और महिला सम्मान के लिए अपने अन्दर के डर को जमींदोज कर दिया । ऐसी ही एक मिसाल बनी सहारनपुर की अतिया साबरी । अतिया पहली ऐसी मुस्लिम महिला है जिन्होंने तीन तलाक के खिलाफ आवाज बुलंद किया । तेजाब पीड़ितों के खिलाफ इंसाफ की लड़ाई लड़ने वाली वर्षा जवलगेकर के भी कदम रोकने की नाकाम कोशिश की गई लेकिन उन्होंने इंसाफ की लड़ाई लड़ना नहीं छोड़ा । हमारे देश में ऐसे कई उदहारण है जो महिला सशक्तिकरण का पर्याय बन रही है ।
आज देश में नारी शक्ति को सभी दृष्टि से सशक्त बनाने के प्रयास किये जा रहे है । इसका परिणाम भी देखने को मिल रहा है । महिलाएं जागरूक हो चुकी है । इन्होंने उस सोच को बदल दिया है कि वह घर और परिवार में से किसी एक जिम्मदारी को ही बेहतर निभा सकती है ।
इक्कीसवीं सदी नारी जीवन में सुखद सम्भावनाओं की सदी है । इसके उदीयमान स्वर्णिम, प्रभात की झाकियाँ अभी से देखने को मिल रही है । महिलाएं अब यह हर क्षेत्र में आगे आने लगी है । आज की नारी अब जाग्रत और सक्रीय हो चुकी है । युगदृष्टा स्वामी जी ने बहुत अच्छी बात कही है “नारी जब अपने ऊपर थोपी हुई बेड़ियों एवं कड़ियों को तोड़ने लगेगी तो विश्व की कोई शक्ति उसे नहीं रोक पायेगी” । वर्तमान में नारी ने रुढ़िवादी बेड़ियों को तोड़ना शुरू कर दिया है । यह एक सुखद संकेत है । लोगों की सोच बदल रही है, फिर भी इस दिशा में और भी प्रयास अपेक्षित है ।
निवदेन – Friends अगर आपको ‘महिला सशक्तिकरण पर निबंध । Women Empowerment Essay in Hindi‘ पर यह लेख अच्छा लगा हो तो हमारे Facebook Page को जरुर like करे और इस post को share करे । और हाँ हमारा free email subscription जरुर ले ताकि मैं अपने future posts सीधे आपके inbox में भेज सकूं ।
Mahila shakti par bahut achha nibandh hai. Dhanyawad mam.
i like this notes about naari sashakthikaran. i am doing my project about this prescribed topic.
wow outstanding
वूमन इम्पॉवरमेंट पर आपकी प्रस्तुति अदभुत है
Nice post.
महिला-पुरुष मे समानता ही सशक्तीकरण
बबिता ज्री, निश्चित तौर पर नारी शक्ति को विश्वपटल पर एक अपनी विशिष्ट पहचान मिलीं है । आपका लेख बहुत ही प्रेरणादायक है ।
नीरज
http://www.janjagrannews.com
Thanks for sharing your thoughts on नारी सशक्तिकरण पर निबंध.