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रबीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी – Rabindranath Tagore Biography in Hindi

 रबीन्द्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय – Rabindranath Tagore Biography in Hindi

Rabindranath Tagore in Hindi : गीतांजलि के लेखक तथा राष्ट्रीय गान (जन गण मन) के उद्गाता श्री रबीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म बड़े उथल-पुथल वाले राजनैतिक माहौल में हुआ था। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाना इस खराब माहौल की सबसे बड़ी वजह थी। दुर्भाग्यवश 10 मई 1857 की महाक्रान्ति भी विफल हो चुकी थी। अंग्रेज शासक हिंदुस्तान में अपनी जड़े जमाने में लगे हुए थे। वे हिन्दुस्तानियों में अंग्रेजी शिक्षा पद्धति के माध्यम से अपने लिए ऐसे समर्थक तैयार करने में जुटे हुए थे, जो रंग – रूप से भले ही हिन्दुस्तानी हो, लेकिन बौद्धिक दृष्टि से वह अंग्रेजी के अनुयायी हो।

Rabindranath Tagore in hindi
Rabindranath Tagore in hindi

बहुत जल्द अंग्रेजी की शिक्षा पद्धति का प्रभाव भारतियों में दिखने लगा। यहाँ के अंग्रेजी शिक्षित भारतीय अपने धर्म, शिक्षा, संस्कृति तथा आचार-व्यवहार को हीनता की दृष्टि से देखने लगे थे। लेकिन हिन्दू-समाज की वैचारिक धूनी की अग्नि अभी भी प्रज्वलित थी। क्योंकि इसको प्रदीप्त करने में राजा राममोहन राय, केशवचन्द्र सेन, महर्षि दयानन्द सरस्वती, और स्वामी विवेकानंद जी जैसे प्रबुद्ध विचारक सक्रीय थे।

ऐसे प्रबुद्ध और सर्वश्रेष्ठ विचारकों के क्रम को आगे बढ़ाते हुए ठाकुर रबीन्द्रनाथ टैगोर ने साहित्य के हर क्षेत्र में चाहे वह काव्य हो, नाटक हो, उपन्यास हो या फिर कहानी, हर विधा में अपनी कलम का कमाल दिखाया। आइये इस महाकवि की जीवन गाथा को विस्तार में जानने से पहले इनके जीवन की कुछ अहम् बातें संक्षिप्त में जान लें ताकि आपको समझने में कोई दिक्कत न हो  –

नाम                    –     रबीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore)

जन्म                   –     7 मई, 1861 ई.(कलकत्ता)

पत्नी                   –      मृणालिनी 

पिता                    –    महर्षि देवेन्द्रनाथ

माता                    –    शारदादेवी

भाई                     –    सत्येन्द्रनाथ

पारिवारिक पृष्ठभूमि

महर्षि रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई, 1861 ई. में कलकत्ता के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था और जहाँ सुख – सुविधा की सभी सामग्रियाँ पहले से ही उपलब्ध थी। इनके पिता महर्षि देवेन्द्रनाथ पूरे बंगाल में अपनी विद्वता तथा सात्विकता के लिए विख्यात थे। ऐसे ही पिता के सानिध्य में बालक रवि का पालन – पोषण हुआ।

रवीन्द्रनाथ टैगोर का बचपन

Rabindranath Tagore Biography in hindi
Rabindranath Tagore Biography in hindi

बालक रवीन्द्रनाथ टैगोर के घर में धर्म, कला और विज्ञान की त्रिवेणी बहती थी। इनके घर में एक बहुत सुन्दर उद्यान भी था | उद्यान की हरियाली और पक्षियों की चहचहाहट इन्हें हमेशा आकर्षित करती थी। इसमें कोई दो राय नहीं कि इनको एक सहज आभिजात्य की आभा बचपन से ही मिली। इनका पूरा बचपन नौकरों की देखरेख में बीता। लेकिन यह भी उल्लेखनीय है कि दौलत की कमी न होने के बावजूद भी इनका बचपन बड़ी सादगी से बीता।

रबीन्द्रनाथ की शिक्षा

रबीन्द्रनाथ टैगोर एक प्रतिभाशाली और बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे। उनके व्यक्तित्व पर उनके पिता की अमिट छाप थी। ध्यान, प्रार्थना, शान्ति और उपासना जैसी महत्वपूर्ण बातें उन्होंने अपने पिता से ही सीखी थी।

परिवार की परम्परा के अनुकूल रबीन्द्रनाथ टैगोर की शिक्षा-दीक्षा घर पर ही प्रारम्भ हुई किन्तु पढाई में ज्यादा ध्यान न देने वाले रबीन्द्रनाथ को साहित्य व चित्रकला में गहरी रूचि थी।

रबीन्द्रनाथ की प्रारंभिक शिक्षा – इनकी प्रारंभिक शिक्षा ओरियंटल सेमिनरी, फिर नार्मल और बंगला अकादमी में हुई।

कॉलेज की शिक्षा – इन्होंने अपने कॉलेज की शिक्षा सेन्ट जेवियर से प्राप्त की।

1878 ई. में अपनी कॉलेज की पढाई पूरी करके ये बैरिस्टर बनने के लिए अपने भाई सत्येन्द्रनाथ के साथ इग्लैंड चले गए। वहां पर इन्होंने लंदन विश्वविद्यालयों से अंग्रेजी साहित्य में विशेष अध्ययन किया। दो वर्ष का अध्ययन पूरा कर 1880 में वे भारत आ गये। भारत लौटकर उन्होंने सामाजिक रुढ़ियों के विरुद्ध कई रचनाएँ लिखी।

रबीन्द्रनाथ टैगोर का साहित्य में योगदान

रबीन्द्रनाथ टैगोर की साहित्य-सर्जना का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। रबीन्द्रनाथ ठाकुर की साहित्यिक शिक्षा का श्रेय उनके एक प्रबुद्ध शिक्षक ज्ञानचन्द्र भट्टाचार्य को जाता है जिन्होंने महाकवि कालिदास द्वारा रचित ‘कुमारसंभवम’ का आद्यतन परायण ही नहीं कराया, उसे सम्पूर्ण रूप से कंठस्थ भी करा दिया।

परिवार और शिक्षक से मिले अच्छे संस्कार के ही परिणामस्वरूप बारह वर्ष की अल्प आयु में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने काव्य रचना शुरू कर दी थी। चौदह साल के होते-होते ‘विल्मीकि-प्रतिभा’ नामक एक गीति-नाट्य की रचना भी कर दी। इसके बाद तो उन्होंने कविता, कथा, उपन्यास, नाटक, निबंध, और यात्रावृतांत प्रभृति सभी विधाओं में प्रचुर मात्रा में साहित्य लिखा।

अमर काव्य गीतांजलि की रचना   

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महाकाव्य गीतांजलि की रचना रबीन्द्रनाथ टैगोर ने 1909 में की थी। इस कालखण्ड की विभिन्न रचनाओं में से ‘गीतांजलि’ इनकी सबसे सर्वश्रेष्ठ रचना है। गीतांजलि की रचना करने के बाद इन्होने विश्व भर में एक श्रेष्ठ कवि, साहित्यकार और कहानीकार के रूप में ख्याति प्राप्त की। उनके काव्य – संग्रहों में से गीतांजलि के अंग्रेजी अनुवाद पर उन्हें 1913 में साहित्य का सर्वश्रेष्ठ नोबेल पुरस्कार दिया गया।

रबीन्द्रनाथ टैगोर इन हिंदी
रबीन्द्रनाथ टैगोर इन हिंदी

भारत के राष्ट्रगान के रचयिता

रबिन्द्रनाथ टैगोर भारत के राष्ट्रगान “जन गण मन” के रचयिता रहें हैं ।

रबीन्द्रनाथ टैगोर का विवाह

रवीन्द्रनाथ टैगोर का विवाह 1883 में मृणालिनी नामक एक सुकन्या से हुआ। मृणालिनी मधुर, सरल और निश्छल स्वभाव की महिला थी। इनका दाम्पत्य जीवन पूर्णतया सफल रहा। पति – पत्नी में अपार प्रेम था | उनकी पांच संताने हुई। तीन बेटियां – मधुरीलता, रेणुका और मीरा देवी थी तथा दो पुत्र रथीन्द्र और समीन्द्रनाथ थे।

22 वर्ष की उम्र तक आते – आते रवीन्द्रनाथ जी साहित्य सृजन और जमीदारी के साथ – साथ राष्ट्रीय गतिविधयों में भी भाग लेने लगे थे। उन्होंने 1905 हुए बंग – भंग का सदैव विरोध किया। उनकी देशभक्ति गीतों की रचना में यत्र-तत्र-सर्वत्र बिखरा है। रवीन्द्रनाथ टैगोर का गीत ‘सुनहरे बंगल का गौरव गान’ बंगाल में बहुत प्रसिद्ध हुआ।

शान्ति – निकेतन की स्थापना

शान्ति-निकेतन की स्थापना तो रबिन्द्रनाथ ठाकुर के जन्म के साल ही हो गई थी। जब उनके पिता देवेन्द्रनाथ ब्रह्म समाज की एक प्रार्थना सभा में सम्मिलित होने के लिए गए थे। वहां जाने पर उन्हें शांति निकेतन की भूमि इतनी पसंद आई कि उन्होंने बीस बीघा भूमि पट्टे पर ले ली। उस भूमि पर उन्होंने वृक्षों का आरोपण करा दिया। कभी-कभी देवेन्द्रनाथ एकांत-साधना के लिए वहाँ जाते थे तो उनके साथ रवीन्द्रनाथ टैगोर भी चले जाया करते थे।

1888 में शान्ति-निकेतन ट्रस्ट की स्थापना के बाद प्रतिवर्ष ब्रह्म समाज के अधिवेशन भी होने शुरू हो गए थे। एक बार एलेक्जेडर डफ नामक एक इसाई मशनरी ने उमेशचन्द्र सरकार नाम के एक छात्र को धर्मांतरण करने के लिए दबाव डालने लगा। उमेशचन्द्र मिशनरी स्कूल का छात्र था। डफ की बात न मानने पर उसने पत्नी का अपहरण करा लिया। जब इस घटना की सूचना महर्षि रवीन्द्रनाथ टैगोर तक पहुंची तो उनका ह्रदय इसाई मिशनरियों की इन कुचेष्टाओं से बहुत आहत हुआ और तब इन्होंने कहा था –

“भाग्य चक्र किसी न किसी दिन अंग्रेजों को अपना भारतीय साम्राज्य छोड़ने के लिए विवश करेगा। मगर किस प्रकार का भारत वे छोड़कर जायेंगे, कितनी भयंकर गरीबी होगी ? जब शताब्दियों पुराने प्रशासन का प्रवाह सूख जायेगा तब वे किस तरह की बेकार कीचड़ व गन्दगी अपने पीछे छोड़ जायेंगे।”

रबीन्द्रनाथ टैगोर ने 1909 शान्ति – निकेतन में एक नये ढंग का आश्रम पद्द्तीय विद्यालय की स्थापना की। इस विद्यालय में बच्चों को उनकी रूचि और प्रकृति के अनुसार शिक्षा देने की व्यवस्था की। इस विद्यालय का व्यय-भार स्वयं महर्षि ही वहन करते थे। इसके लिए उन्हें पूरी के अपने मकान और यहाँ तक कि अपने पत्नी के आभूषण को भी बेचना पड़ा था।

शिक्षा दर्शन

गुरूदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी स्कूली शिक्षा की नीरसता भरी घड़ियों का वर्णन करते हुए अपने एक लेख में लिखा है कि “ टिमटिमाते हुए उजाले में मास्टर जी प्यारीचरण सरकार की अंग्रेजी की फस्ट बुक पढ़ाया करते थे । पढ़ते – पढ़ते पहले उबासियाँ, फिर नीद आने लगती थी….” शिक्षा के इसी उबाऊ प्रकार ने उन्हें शान्ति – निकेतन की कला, संगीत से भरपूर और प्रकृति के मनोहर सानिध्य में शिक्षा व्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया ।

जब उन्होंने दूसरी बार यूरोप की यात्रा की थी तब वे 30 वर्ष की अवस्था में थे और जिसका विवरण  ‘साधना’ पत्रिका में छपा था । 1912 में कविन्द्र रवीन्द्र ने पुन: लंदन तथा अमेरिका की यात्रा की । उनके इस यात्रा का उद्देश्य डेनमार्क की सहयोगात्मक शिक्षण पद्धति का अध्ययन करना तथा यूरोप में शान्ति निकेतन की शिक्षा पद्दति पर लोगो से विचार – विनिमय करना था ।

यूरोप यात्रा के दौरान ही रवीन्द्रनाथ टैगोर की गीतांजलि का प्रथम संस्करण लंदन की ‘इण्डिया सोसायटी’ से प्रकाशित हुआ । इसके बाद तो इग्लैंड में उनकी गीतांजलि की धूम मच गई | 1913 में रवीन्द्रनाथ टैगोर को गीतांजलि पर नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ ।

नोबेल पुरस्कार प्राप्त होने के बाद उनकी ख्याति और भी बढ़ गई । आज विश्व की अनेक भाषाओँ में उनकी गीतांजलि तथा अन्य रचनाओं का अनुवाद हो चूका है ।

डी.लिट्. की उपाधि

साहित्य के शिखर – सम्मान से सम्मानित रबीन्द्रनाथ टैगोर को कलकत्ता विश्वविद्यालय ने डी.लिट्. की मानद उपाधि प्रदान की ।

सर की उपाधि तथा नाइटहुड का त्याग

1915 में अंग्रेजी सरकार ने रबीन्द्रनाथ टैगोर को ‘सर’ की उपाधि से विभूषित किया । लेकिन 1919 में हुए जलियावाला बाग हत्याकांड घटित हुआ । जिससे दुखी होकर इन्होंने सर की उपाधि ( नाइटहुड की उपाधि ) वापस लौटा दिया

शान्ति निकेतन : विश्व भारतीय विश्वविद्यालय

1921 में महर्षि रबीन्द्रनाथ टैगोर जी ने शान्ति – निकेतन को विकसित कर विश्व भारती विश्वविद्यालय का रूप दे दिया । शीघ्र ही शान्ति निकेतन देश – विदेश की विशिष्ट – विद्द्या विभूतियों का केंद्र बन गया । विश्वभारती में कला, विद्द्या, देश – विदेश की विभिन्न भाषाओँ और साहित्य अध्यापनार्थ भवनों के निर्माण किया गया । ग्रामीण जनता में नयी सामाजिक चेतना और ग्रामीण शिल्पों को समुन्नत करने के उद्देश्य से ‘श्रीनिकेतन’ नामक संस्थान की भी स्थापना की गई ।

रवीन्द्रनाथ जी का साहित्य जितना महत्वपूर्ण था, उतना ही प्रेरक उनका व्यक्तित्व । उनके व्यक्तित्व का परिचय खुद उनका साहित्य है । जिस सत्य का सुन्दर रूप उन्होंने अपने काव्य में रूपान्तरित किया है, उसी सत्य को उन्होंने अपने जीवन में भी चरितार्थ किया था ।

इन्होंने साहित्यकार, कलाकार, शान्ति, विचारक और समाजसुधारक के रूप में जो अपना अभूतपूर्व योगदान दिया वह अतुल्य है । रबीन्द्रनाथ टैगोर का निधन 7 अगस्त 1941 को पूर्णिमा के दिन 80 वर्ष की आयु में हो गया था लेकिन आज भी इस महान साहित्यकार, चित्रकार को हम प्रतिवर्ष रबीन्द्रनाथ जयन्ती के रूप में मनाकर याद करते है और आगे जब कभी भी भारतीय विचारक और साहित्यकार की चर्चा होगी तो इनका नाम कोटि – कोटि लिया जायेगा ।

निवदेन – Friends उम्मीद है कि  आपको ‘ गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर ‘ के जीवन वृत्तान्त पर लिखा यह लेख अच्छा लगा होगा और उनके बारे में दी गई जानकारी से लाभान्वित हुए होंगे । यदि ऐसा है तो मेरे इस लेख को जरुर share कीजियेगा और हाँ हमारा free email subscription जरुर ले ताकि मैं अपने future posts सीधे आपके inbox में भेज सकूं

Babita Singh
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