गंगा दशहरा 2017 पूजा विधि
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गंगा दशहरा 2017 पूजा विधि, कथा व दान पुण्य का महत्व    

गंगा दशहरा हिन्दू धर्म का एक प्रमुख पर्व है यह पर्व प्रतिवर्ष ज्येष्ठ माह शुक्ल पक्ष की दशमी को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है ऐसा माना जाता है कि इस दिन गंगा जी धरती पर अवतीर्ण हुई थी गंगा दशहरा मनाया जाने के पीछे यह भी मान्यता है कि इस दिन प्रात:काल गंगा में स्नान करने एवं पूजा करने से 10 पापों से मुक्ति मिलती है इसी कारण से इस पर्व का नाम गंगा दशहरा पड़ा है

गंगा दशहरा की पूजा विधि, व्रत कथा व महत्व (Ganga Dussehra 2017 in hindi)

गंगा दशहरा 2017 पूजा विधि, कथा व दान पुण्य का महत्व

इस पर्व को उत्तर भारत के लोग खासकर गंगा की घाटियों में रहने वाले अपूर्व हर्षोल्लास के साथ मनाते है

गंगा दशहरा 2017 कब है ?

2017 में गंगा दशहरा 3 जून को है

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गंगा दशहरा के दिन लोग प्रात:काल मोक्ष प्राप्ति के लिए माँ गंगा में डुबकी लगाते है। स्नान कर दान पुण्य करते है और व्रत रखते है। इस दिन ही गंगा जी का धरती पर अवतरण हुआ था इसलिए इस दिन को महापुण्यकरी पर्व रूप में मानाते है।

गंगा दशहरा पूजा विधि व पूजन का सामान  

  • गंगा दशहरा के दिन गंगा की पूजा विशेष रूप से करनी चाहिए। इस दिन प्रात:काल गंगा नदी में स्नान करें। यदि गंगा नहाने के लिए नहीं जा पा रहे है तो आप अपने घर के समीप ही किसी स्व्च्छ नदी या तालाब में गंगा मैया का ध्यान करते हुए स्नान कर लें। स्नान करते समय 10 बार डुबकी लगाना न भूलें।
  • गंगा दशहरा पूजा की सामग्री में हर चीज 10 की संख्या में लें ( फूल, फल, बताशे, दस प्रकार के नैवेद्य, रोली, चावल, मौली, नारियल, दिया, धुप, पान के पत्ते ) को व्यवस्थित कर लें।
  • गंगा जी का ध्यान करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें –

        “ऊॅ नम: शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नम:”

  • उपर्युक्त मंत्र का उच्चारण करने के बाद निम्न मंत्र का उच्चारण करें –

        “ऊॅ नमो भगवते ह्रीं श्रीं हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा”

  • उपर्युक्त मंत्र का उच्चारण करते हुए गंगा पूजा की सामग्री अर्पित करें और धुप तथा दिया जलाएं।
  • गंगा जी को धरती पर लाने वाले भागीरथी का नाम और गंगा के उत्पत्ति स्थल का भी स्मरण करें।
  • पूजा समाप्ति के बाद 10 प्रकार की वस्तुएं दान करें।
  • गंगा दशहरा के दिन चूरमा का भोग लगाना चाहिए। घर पर सवा सेर प्रसाद के रूप में चूरमा बना लें औए भोग लगाने के बाद परिवार के सभी सदस्यों को खाने के लिए दें ।

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गंगा दशहरा के दिन क्या दान करें ?

गंगा दशहरा के दिन दान – पुण्य करने का भी विशेष महत्व है। गंगा दशहरा के दूसरें दिन दान में सत्तू, मटका और हाथ का पंखा, केला, अनार, सुपारी, खरबूजा, आम आदि चीजें दान में देने से दोगुना फल प्राप्त होता है।

गंगा दशहरा की कथा

गंगा दशहरा मानाने के पीछे एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है- अयोध्या के सम्राट महाराजा सगर की दो पत्नियाँ थी। एक केशिनी व दूसरी सुमति। केशिनी एक असमंजस नाम का पुत्र और अंशुमान नामक एक पौत्र था। दूसरी पत्नी सुमति के साठ हजार पुत्र थे।

एक बार महाराजा सगर अश्वमेघ यज्ञ कर रहें थे। यज्ञ पूर्ति हेतु जब उन्होंने घोड़े को छोड़ा तब उनके दस हजार पुत्र घोड़े की रक्षा के लिए चले गये। इधर भगवान इन्द्र को यह भय सताने लगा कि अगर महाराजा सगर का यज्ञ पूरा हो गया तो उन्हें स्वर्ग का सिंहासन मिल जायेगा। अत: इंद्र ने घोड़े को चुराकर पाताल में कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया।

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राजा सगर के पुत्र घोड़े को ढूढ़ते – ढूढ़ते कपिल मुनि के आश्रम जा पहुंचे। उस समय कपिल मुनि तपस्या पर बैठे हुए थे। राजकुमारों ने जब वहां पर घोड़े को बंधा देखा तो उनके क्रोध का ठिकाना न रहा और वे कपिल मुनि को चोर समझकर उन्हें भला – बुरा कहने लगे और शोर मचाने लगे। इससे कपिल मुनि की तपस्या विघ्न पहुंचने लगा तो उन्होंने क्रोधित हो श्राप दे दिया जिससे दस हजार राजकुमार जलकर भस्मीभूत हो गए। इस प्रकार से राजा सगर के साठ हजार पुत्र अश्वमेघ यज्ञ के घोड़ों को ढूढने गए तो जीवित नहीं लौटे।

इधर बहुत देर तक न घोड़ा और न ही राजकुमारों के लौटने पर राजा को घबराहट होने लगी। उन्होंने अंशुमान को  अश्वमेघ यज्ञ के घोड़ों को ढूढने के लिए भेजा। जब अंशुमान घोड़े तथा अपने भाईयों को ढूढ़ते – ढूढ़ते कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे तो वहां पर उन्हें महात्मा गरुण मिले।

महात्मा गरुड़ ने अंशुमान को सारा वृतांत बताया और कहा कि तुम्हारें चाचाओं को आचरण पाप युक्त था इसलिए कपिल मुनि ने उन्हें श्राप देकर भस्म कर दिया। यदि तुम उनकी मुक्ति चाहते हो तो तुम्हें गंगा को धरती पर ले आना होगा। उन्हीं के जल से तुम्हारें चाचाओं को मुक्ति मिलेगी। तुम अपने पिता के अश्वमेघ यज्ञ को पूरा करने के लिए घोड़े को ले जा सकते हो। अंशुमान अश्व को लेकर आ गए और इस प्रकार महाराजा सगर का अश्वमेघ यज्ञ पूर्ण हुआ।

राजा सगर की मृत्यु के बाद अंशुमान राजा बने। कुछ समय बाद अंशुमान राज – काज का कार्य अपने बेटे दिलीप को सौपकर गंगा को धरती पर लाने के लिए हिमालय पर्वत चले गए। लेकिन वह गंगा को धरती पर लाने में सफल नहीं हुए।

समय बीतता गया। राजा दिलीप के बड़े बेटे भागीरथी अब राजा बन गए थे। राजा भागीरथी की यह कामना थी की जो कार्य उनके पूर्वजो ने पूरा न किया उन्हें वह पूरा करें। अत: उन्होंने गंगा को धरती पर लाने के लिए कई वर्षो तक घोर तप किया।

गंगा दशहरा 2017 पूजा विधि

भागीरथी के तप से पसन्न होकर ब्रम्हाजी ने उन्हें दर्शन दिया और बोले –“हे राजन तुमने बहुत कठोर तप किया है, मांगो तुम्हें क्या वरदान चाहिए।”

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रजा भागीरथी ने कहा – हे प्रभु, आप मेरे पूर्वज राजा सगर के साठ हजार पुत्रों के उद्धार के लिए गंगा जी को धरती पर भेज दीजिए और मुझें एक पुत्र प्रदान कीजिए।”

ब्रम्हाजी ने कहा, तथास्तु। लेकिन गंगा जी को झेलना आसान नहीं होगा। अत: तुम भगवान शंकर को प्रसन्न करों ताकि भगवान शंकर गंगाजी को झेल सके।”

राजा भागीरथी ने अपने कठोर तप से भगवान शंकर को गंगा जी को झेलने के लिए राजी कर लिया। जब गंगाजी भूतल पर आई तब भगवान शंकर ने उन्हें अपनी जटाओं में झेल लिया।

भगवान शंकर ने गंगा को अपनी जटा से हिमालय में ब्रह्मा के बनाये विंदुसार तालाब में छोड़ा। यहाँ से गंगा जी की सात धाराएं हुई। हदिनी, पावनी, नलिनी, सुचक्षु, सीता, सिंधु व जान्ह्वी।

हदिनी, पावनी, नलिनी, धाराएं विन्दुसार से पूर्व दिशा की ओर चली गई। सुचक्षु, सीता, सिंधु पश्चिम दिशा की ओर बह चली। सातवी धारा भागीरथी के पीछे – पीछे चल पड़ी। रास्ते में महात्मा जन्हु अपनी तपस्या भंग करने के कारण गंगा जी को पी गए।

तब देवताओं ने मिलकर उनसे अनुरोध किया तो उन्होंने गंगाजी को अपने कान के रास्ते से निकला। इस तरह  गंगाजी का नाम जान्ह्वी पड़ गया।

गंगा जी भागीरथी के पीछे – पीछे चलती हुई उस स्थान पर भी पहुँच गई जहाँ राजा सगर के साठ हजार पुत्रों की राख पड़ी थी। गंगा जी के स्पर्श से राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को मुक्ति मिल गई।

इस प्रकार राजा भागीरथी के प्रयत्न से गंगा जी पृथ्वी पर बहने लगी गंगा का नाम भागीरथी पड़ गया। जिस स्थान पर राजा सगर के पुत्र जलकर भस्म हो गए थे, वह स्थान गंगा सागर के नाम से सुविख्यात हुआ।

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ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को गंगाजी धरती पर अवतरित हुई और स्थान – स्थान पर लोगों को पाप मुक्त करती हुई बह रही है। तब से लोग गंगा दशहरा को उत्सव के रूप में मानते है और इस दिन गंगा में स्नान कर, पूजा – अर्चना कर अपने पापों से मुक्ति पाते है।

गंगा दशहरा का महत्व

गंगा दशहरा का महत्व इसकी कथा में छिपा हुआ है। भागरथी के कठोर परिश्रम से उनकी हजारों प्रजा को जल मिल गया और उनके खेत लहलहा उठे। जो की उनके पुत्रों की मुक्ति के सामान है और यही इसका असली महत्व है।

शास्त्रों में कहा गया है कि गंगा दशमी के दिन धरती पर गंगा का अवतरण हुआ था, इसलिए यह दिन महापुण्यकरी और मोक्षदायनी है। इस दिन गंगा में स्नान करने एवं पूजा करने से 10 पापों का नाश होता है। गंगा दशहरा के दिन पितरों का तर्पण करने का भी विशेष महत्व है।

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Babita Singh
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6 thoughts on “गंगा दशहरा 2017 पूजा विधि, कथा व दान पुण्य का महत्व    

  1. गंगा दशहरा कि यह कहानी हमें बहुत ही अच्छी लगी । इस पोस्ट से गंगा दशहरा के बारे मे बहुत कुछ जानने को मिला । इसके लिए आपका बहुत – बहुत धन्यवाद ।

  2. राजा भागीरथ के द्वारा गंगा जी को धरती पर लाने की पौराणिक कथा शेयर करने के लिए धन्यवाद. हिन्दू धर्म विविधताओं एवं आश्चर्यों से भरा पड़ा है| लेकिन इस बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी है| मुझे विश्वास है कि इस पोस्ट से बहुत से लोगों को लाभ मिलेगा|

  3. गंगा दशहरा मेले और पूजा विधि के बारे में बहुत अच्छी जानकारी ।

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