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महाकवि सूरदास का जीवन-परिचय – Surdas Biography in Hindi

Surdas Biography in Hindi 

Surdas Biography in Hindi
Surdas Biography in Hindi

Surdas Biography in Hindi – संगीतकार, संत और अष्टछाप के एकमात्र अंधे कवि सूरदास का आविर्भाव हिन्दी – साहित्य के भक्ति – युग में हुआ था । उस दौरान मध्यकालीन समाज कई प्रकार के अविश्वासों और झूठी परम्पराओं से घिरा हुआ था । लोगों के दिलों में धर्म के स्थान पर विरक्ति की भावना ने जगह बना ली थी । उस समय की धार्मिक अवस्था ठीक नहीं थी । इस वजह से हिन्दू – धर्म अपने पतन की ओर बढ़ने लगा था, ऐसे समय में जन्मांध सूरदास ने जन्म लिया और कृष्ण के जीवन का अपने गीतों के द्वारा ऐसी तान फूंकी कि उनकी आवाज की तरंगों में लोग डूबने – उतराने लगे ।

सूरदास माधुर्य भाव के कवि और कृष्ण भगवान के उपासक थे । उन्होंने एकमात्र प्रसिद्द रचना ‘सूसागर’ में श्रीमद्भागवत पुराण के दशम स्कंध के आधार पर श्रीकृष्ण के जन्म से लेकर मथुरा – गमन और उसके बाद गोप – गोपियों के विरह भाव तक का वर्णन किया है । रस की दृष्टि से सूरदास ने वात्सल्य और श्रृंगार केवल इन्हीं दो रसो को मुख्य रूप से अपनाया है । वात्सल्य रस के मामले में सूरदास वास्तव में एक अजोड  कवि है ।

हिंदी काव्य जगत में सूरदास का स्थान सूर्य के समान रहा, जिसने अपनी किरणों के प्रकाश से भक्तिकाल सगुणधारा को प्रकाशित किया ।आइये उनके जीवन वृतांत और उनके काव्यों में वर्णित भावों – विचारों की मधुरता, व्यापकता, विषदता और प्रभावों के बारें में विस्तार से जानते है ।

सूरदास का जीवन परिचय एक नजर में –

नाम                    :        सूरदास

जन्म तिथि          :        संवत् 1540 (हिंदी साहित्य के भक्ति – युग में)

निवास स्थान      :        रेणुका क्षेत्र के पास साही ग्राम

सूरदास के पिता :        रामदास गवैया      

भाषा                  :        ब्रजभाषा

गुरु                     :        महाप्रभु बल्लभाचार्य

रचनाएं               :        सूर-सागर (एक मात्र प्रमाणिक ग्रन्थ)

जन्म तिथि:

महाकवि सूरदास की जन्म – तिथि को लेकर विद्द्वानों में एकमत नहीं है । कुछ विद्वानों का मत है कि सूरदास का जन्म संवत् 1540 है । आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने भी इसी को माना है । किन्तु नवीन खोजो के आधार पर सूरदास की जन्म – तिथि संवत् 1535 मानी जाती है । इस जन्म – तिथि को मानने वाले विद्वानों के अनुसार सूरदास गुरु बल्लभाचार्य से आयु में सिर्फ 10 दिन छोटे थे । इस बात का उल्लेख ‘भाव संग्रह’ में भी मिलता है जो इस प्रकार हैं “सो सूरदास जी श्री आचार्य महाप्रभु ते 10 दिन छोटे होते .”

भाव संग्रह में कही गई उपरोक्त बातों के अनुसार, महाप्रभु बल्लभाचार्य की जन्म – तिथि संवत् 1535 वैशाख कृष्ण पक्ष 11 है । इसमें से 10 दिन घटा देने पर संवत् 1535 वैशाख शुक्ल पक्ष हुआ और यही सूरदास की जन्म – तिथि । इस बात की पुष्टि निम्न पद के द्वारा भी होती है –

  प्रगटे भक्त शिरोमणि राय ।

माधव शुक्ला पंचमी, ऊपर छट अधिक सुखदाय,

   संवत् 1535 वर्षे कृष्ण सखा प्रगटाय

करिहें लीला फेरी अधिक सुख मन मनोरथ पाय

   श्री बल्लभ, श्री विठ्ठल जी रूप एक दरसाय

रसिकदास मन आस पूरन है, सूरदास भू आय ।

जन्म – स्थान:

संगीतकार सूरदास के जन्म – स्थान के बारे में भी बहुत सी किम्वदंतिया है । कुछ विद्वानों का कहना है कि इनका जन्म आगरा – मथुरा के मध्य रेणुका नामक ग्राम में हुआ था । कुछ विद्वानों का कहना है कि इनका जन्म दिल्ली के निकट ‘सीही’ नामक ग्राम में हुआ था । लेकिन डा. मुंशीराम शर्मा का कहना है कि सूरदास ‘सीही’ ग्राम के निवासी नहीं है बल्कि ‘सीही’ ग्राम निवासी सूरदास मदन – मोहन थे, जो अकबर के कृपापात्र और संडीले के अमीन थे ।

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ऐसा माना जाता है कि ‘साही’ नामक कोई भी ग्राम दिल्ली के निकट नहीं है, हाँ ‘सीही’ नामक ग्राम की पुष्टि जरुर मिली है । इसलिए सूरदास का जन्म – स्थान रेणुका क्षेत्र के पास ही ‘साही’ ग्राम में हुआ माना जाता है ।

बाबु राधाकृष्णदास और मियांसिंह ने भी अपने ‘भक्त – विनोद’ में ‘साही’ को ही ठीक बतलाया है । पं. नलिनिमोहन सान्याल ने भी ‘भक्त – शिरोमणि सूरदास’ में सूर का जन्म – स्थान स्पष्टतया ‘शाही’ ही लिखा है ।

जीवन – काल:

सूरदास के पिता का नाम रामदास गवैया बताया गया है । सूरदास की जाति सारस्वत थी या भाट, इस बारें में भी अनिश्चितता है । इन्होंने अपने अधिकतर जीवन – काल गोपाचल या गऊघाट में बिताया था । इस बात की पुष्टि ‘सूर – शतक’ से भी होती है –

    “गोपांचल अंचल बिखे, है साही इक ठांव ।

 गोचारण हरि करत जहां, सारस्वतन का गांव ।”

सूरदास के अंधे होने की बात भी विवाद – ग्रस्त

सूरदास के अंधे होने की बात भी विवाद – ग्रस्त है । कुछ विद्वानों का मत है कि वह जन्म से अंधे थे और कुछ विद्वानों का मत है कि एक अवस्था के बाद वे नेत्र – ज्योति से वंचित हुए थे । जो विद्वान उन्हें जन्मान्ध मानते है वे निम्न पक्ति से अपने मत की पुष्टि करते है –

 “सूर कहा कहि दुर्विध अंधरो बिना मोल को मेरी ।”

वास्तव में सूरदास जन्मान्ध नहीं थे । उनके आंख होने का प्रत्यक्ष प्रमाण 84 वैष्णवों की वार्ता’ में मिलता है । डा. बेणीप्रसाद, डा. श्यामसुन्दरदास और मिश्र बन्धु भी उन्हें जन्मान्ध नहीं मानते है ।

डा. बेणीप्रसाद का कहना है कि “प्राकृतिक दृश्यों का इतना सजीव और मार्मिक चित्रण को देखकर यह नहीं लगता है कि वे जन्म से अंधे थे । मिल्टन की तरह वे भी अवस्था बढ़ने पर नेत्र – ज्योति से वंचित हो गए थे ।”

इस संबंध में एक किम्वदंती भी प्रचलित है कि एक बार वे किसी सुंदरी पर आकृष्ट हो गए, किन्तु जब उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ तो इसका प्रायश्चित करने के लिए उन्होंने अपनी आंखो को फोड़ लिया । पर इन बातों का कोई आधार प्राप्त नहीं है । यह केवल एक प्रकार की जनश्रुति है ।

सूरदास की रचनाएं : Surdas Ki Rachana in Hindi

सूरदास के पांच ग्रन्थ प्रमाणित माने जाते है – सूर – सागर, सूर – सारावली, साहित्य – लहरी, ब्याहला, और नल – दमयन्ती ।

सूर – सागर में लगभग छ: हजार पदों के तीन संग्रह प्राप्त हुए है । सूर – सागर सूरदास का सबसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ है – जिसमें कृष्ण की बाल – लीला, मथुरा – प्रवास, गोपी – विरह, उद्धव – गोपी संवाद, आदि का वर्णन मिलता है । ऐसा कहा जाता है कि सूर – सागर में कुल मिलाकर 35,000 पद थे, लेकिन अभी तक सिर्फ 7000 ही प्राप्त हो पाए है ।

सूरदास ने अपनी रचना सूर – सागर को महाप्रभु की आज्ञा से लिखी थी । पहले तो इस रचना का नाम केवल सूर था पर महाप्रभु को यह इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने सूर को सागर की उपाधि से विभूषित किया और इस प्रकार से इस ग्रन्थ का नाम सूर – सागर पड़ा ।

सूरदास का एकमात्र प्रमाणित ग्रंथ सूर – सागर ही है । इस ग्रन्थ में वात्सल्य, सांख्य, एकांत, भक्ति तथा सेवा का जो सामजस्य दिखाई पड़ता है, वह अन्यत्र देखने को नहीं मिलता है ।

सूर सरावली की प्रमाणिकता को लेकर विद्वानों में मतभेद है । सूर – सारावली के बारे में तीन प्रकार मत मिलते है –

  1. सूर – सारावली सूरसागर ग्रन्थ का ही एक भाग है ।
  2. सूर – सारावली एक स्वत्रंत रचना है ।
  3. यह एक अप्रमाणित रचना है तथा किसी अन्य कृष्ण – भक्त कवि की रचना है ।

साहित्य लहरी एक सौ अठारह कूटपदों का संग्रह है ।

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सूरदास के ग्रन्थ:

उपर्युक्त के अलावा भक्ति कालीन कवि सूरदास के अन्य प्रमुख ग्रन्थ है –

  1. भागवत-भाषा
  2. सूरसागर सार
  3. सूर रामायण
  4. दशम स्कन्ध भाषा
  5. राधारसकेलु कौतुक
  6. बाल लीला
  7. नाम-लीला
  8. भंवरगीत
  9. दाल-लीला
  10. गोवर्धनलीला
  11. प्राणप्यारी फल
  12. दृष्टकूट के पद
  13. सूरशतक
  14. सूर पंचीसी
  15. सूर साठी
  16. सेवा-फल
  17. सूरदास के विनय के पद
  18. हरिवंश टीका (संस्कृत)
  19. एकादशी महात्म्य
  20. रामजन्म |

सूरदास की भाषा-शैली:

हिंदी के मध्यकाल में मध्य देश की महान भाषा परम्परा के उत्तरदायित्व का पूरा निर्वाह ब्रजभाषा ने किया और इस भाषा को गौरवान्वित करने का सर्वाधिक श्रेय सूरदास को जाता है,  जिन्होंने ब्रजभाषा का चरम विकास किया । इसलिए सूरदास को ‘अष्टछाप का जहाज’ भी कहा जाता है ।

सूरदास की भाषा ब्रजभाषा होने के कारण इन्होंने साहित्यिक विकास में अमूल्य योगदान दिया । इन्होंने ब्रजभाषा को सरल तथा प्रवाहमयी भाषा का रूप दिया । भाषा को सजीव बनाने के लिए उसमें मुहावरों और लोकोक्तियों का भी प्रयोग किया है।  ‘सूरसागर’ में यथा – ‘मो आगे को छोकरा जीतेयो चाहे सोहि’

मुहावरों और लोकोक्तियों के साथ – साथ वात्सल्य और श्रृंगार भी प्रचुर मात्रा में विद्यमान है । इनकी रचनाओं में वात्सल्य और श्रृंगार की एक धारा प्रभावित होती है । इनकी रचनाओं में  बाल्य-सुलभ-चेष्टाओं का जो मनोवैज्ञानिक, सजीव और मार्मिक चित्रण देखने को मिलता है वह अन्यत्र कही और नहीं मिलता ।

सूर की सारी रचनाएँ माधुर्य और प्रसाद गुण से ओत – प्रोत है । सूरदास को अपने साहित्यिक क्षेत्र का सूर्य भी कहा जाता है क्योंकि श्रृंगार और वात्सल्य का जितना सुन्दर चित्रण इन्होंने अपनी रचनाओं में किया है, वह संसार के साहित्य में अपरिमेय रूप से चमत्कृत है । यही कारण है कि सूरदास की रचना पढ़ लेने के बाद पाठक को किसी और की रचना नहीं भाति है ।

सूरदास की निधन तिथि:

सूरदास ने संवत् 1640 में अपने भौतिक शरीर का त्याग किया । कहा जाता है कि सूरदास ने अपने आखिर क्षण तक भजन गाया था । परसौली के जिस कुटिया में ये रहते थे वह कुटिया आज भी है । देश में हर साल सूरदास के हिंदी साहित्य में योगदान को याद करके महाकवि सूरदास की जयन्ती भी मनाई जाती है ।

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Babita Singh
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