International Labour Day Speech In Hindi – अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस (मई दिवस) पर भाषण एवं निबंध
International Labour Day Speech In Hindi – नमस्कार ! राष्ट्र निर्माण में जुटे सभी कर्मठ श्रमिकों को समर्पित अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !! गौरतलब है कि 1 मई को “International Labour Day” है। यह दिन पूरी तरह से कामकाजी श्रमिकों को समर्पित एक महत्वपूर्ण दिन है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 1 मई को ‘मजदूर दिवस’ मनाएं जाने के तर्क के आधार पर भारत में भी यह दिन ‘श्रमिक दिवस’, ‘मजदूर दिवस’, और ‘मई दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
भारत में मजदूर दिवस कामकाजी लोगों के सम्मान में मनाया जाता है। भारत में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान ने 1 मई 1923 को मद्रास में इसकी शुरुआत की थी जबकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मजदूर दिवस मनाने की शुरुआत 1 मई 1886 को हुई थी।
प्राय: मजदूर दिवस पर एक प्रचलित नारा भी सुनाई पड़ता है जो शायद ही वर्ष के किसी और दिनों में सुनाई देता हो। वह नारा है ‘दुनिया के मजदूरों एक हो’। यह बड़े दुर्भाग्य की बात है। मजदूर दिवस के दिन तो यह नारा बुलंद किया जाता है लेकिन जैसे – जैसे समय गुजरता जाता है, इसकी गूंज मंदी पड़ती जाती है। ‘दुनिया के मजदूरों एक हो’ दरअसल इस नारे के पीछे मजदूरों के एक लम्बे संघर्ष की कहानी है और उसी की उपज है ‘अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस’।

‘अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस’ के उत्सव का इतिहास
इतिहास में दर्ज मई 1, सन 1886 को मजदूरों ने अपने हक़ की लड़ाई लड़ी थी। यद्यपि यह लड़ाई भयावह एवं त्रासदपूर्ण थी और तथाकथित कई मजदूरों की जान चली गई थी। अत: यह एक प्रकार से मजदूरों के बलिदान का दिवस भी है। यह घटना उस समय की है, जब अमेरिका के ‘शिकांगो’ शहर में मजदूरों ने एक लम्बा आंदोलन किया था। उस समय देश के लगभग सभी कारखानों में काम करने वाले मजदूरों से बारह – बारह घंटे तक काम लिया जाता था। मजदूर यूनियन में इसे लेकर आक्रोश था और वह आठ घंटे काम करने को लेकर हड़ताल कर रहे थे।
हड़ताल के दौरान ही शिकागो की ‘हेय’ मार्केट में मजदूरों की सभा में बम धमाका हुआ। इस बम धमाके में कई मजदूरों की मौत हो गई और अनेक मजदूर घायल भी हो गए। मजदूर नेताओं को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में गवाह से यह पता चला कि मजदूरों की कोई गलती नहीं थी।
वैसे संतोषजनक बात यह रही कि मजदूरों के इस आंदोलन की चिंगारी विश्व के अन्य देशों में फैल गई। इस आंदोलन से प्रेरित होकर फ़्रांस के पेरिस शहर में भी मजदूरों की एक बड़ी सभा हुई। इस सभा में शिकागों शहर में शहीद हुए मजदूरों को श्रद्धांजलि भी दी गई।
तत्पश्चात 1989 में पेरिस में एक बैठक हुई। इस बैठक में 1 मई का दिन अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस / श्रम दिवस के रूप में मनाया जाने का निश्चय किया गया। परिणामस्वरूप तब से 1 मई को प्रत्येक वर्ष अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मजदूर दिवस को मनाया जा रहा है।
‘अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस’ का उद्देश्य
ये तो सर्वविदित है कि किसी भी देश व समाज के निर्माण में मजदूरों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। ‘अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस’ मनाने का उद्देश्य है 4 मई 1886 को शिकागो के हैय मार्केट में हुए बम धमाके में मरे हुए मजदूरों को श्रध्दांजलि देना और उस नारे को साकार करना जो सभी मजदूरों को एक सूत्र में बाँधती है।
भारत में मजदूर दिवस मनाएं जाने की शुरुआत
ज्ञातव्य हो कि पहली बार भारत में मजदूर दिवस 1 मई 1923 को मद्रास में मनाया गया था। इसकी शुरुआत “लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान” ने की थी। भारत में इस दिन मजदूर सभा करके अपनी समस्याओं पर विचार – विमर्श करते है। जुलूस निकाले जाते है। अन्तर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन द्वारा इस दिन विशेष सम्मलेन का भी आयोजन किया जाता है।
इस दिन सरकार द्वारा मजदूरों के हक़ को सुरक्षित रखने के लिए कानून भी पारित किए गए है। इन कानूनों में यह बात कही गई कि प्रत्येक मजदूर को बिना किसी भेद – भाव के अपनी योग्यता व क्षमता के अनुसार श्रम – शक्ति का उपयोग करने का अधिकार है।
श्रमिक को जाति, धर्म, लिंग, नस्ल के आधार पर कार्य का चुनाव करने की स्वतंत्रता है। उसे बंधुआ या गुलाम बनाकर काम करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। इसी प्रकार के दर्जनों कानून स्वतंत्रता से पूर्व व स्वतंत्रता के बाद मजदूरों के हित के लिए बनाए गए।
मजदूर दिवस की शुरुआत हुए लगभग सवा सौ साल हो चुके है। गौरतलब है कि हर एक को अपनी श्रम – शक्ति के अनुसार गरिमा-मय जीवनयापन करने का पूरा अधिकार है और उतना ही जरुरी अपने अधिकारों के बारे में पता होना। मजदूरों के हक़ को सुरक्षित रखने के लिए अनेक अधिनियम भारत में पारित किए गए है।
मजदूरों के हक़ को सुरक्षित रखने के लिए बने अधिनियम
यहाँ के लोग दो वर्गो में बटे है। पहला पूंजीपति वर्ग और दूसरा मजदूर वर्ग। मजदूर वर्ग हाड़तोड़ मेहनत के बावजूद भी अभाव की जिंदगी जीने के लिए बेबस है तो दूसरी ओर पूँजिपति वर्ग उतना ही संपन्न है। दोनों वर्गों के जीवन में बहुत बड़ा फर्क है लेकिन अफसोस यह फर्क कम होने की अपेक्षा बढ़ता ही जा रहा है।

कारखानों, खेतों में काम करने वाले मजदूरों और किसानों को अधिकांशत: भारी जान – माल का नुकसान होता रहता है। लेकिन मालिको द्वारा न तो उनका स्वास्थ्य बीमा कराया गया रहता है और न ही उन्हें या उनके परिवार को ठीक से मुवावजा मिलता है। इसलिए सरकार द्वारा मजदूरों के हक़ को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से कुछ अधिनियम बनाया गया है जो निम्नलिखित है –
- कामगार मुआवजा अधिनियम 1923
- ओद्योगिक विवाद एक्ट 1947
- न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948
- फैक्ट्रीज अधिनियम 1948
- राज्य कर्मचारी बीमा अधिनियम 1948
- बाल मजदूरी (उन्मूलन एवं नियम) अधिनियम 1948
- मातृत्व लाभ अधिनियम 1961
- बोनस अधिनियम 1965
- बंधुआ मजदूरी प्रथा अधिनियम 1976
- असंगठित कामगार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम 2008
- कामगार मुआवजा अधिनियम 1923
कामगार मुआवजा अधिनियम 1923 का गठन मजदूरों व उनके परिवार की सुरक्षा के लिए किया गया है। इसे जम्मू कश्मीर सहित पुरे भारत में लागू किया गया है।
ओद्योगिक विवाद एक्ट 1947
मजदूरों के झगड़ों को सुलझाने के लिए इस एक्ट को बनाया गया है। ओद्योगिक विवाद एक्ट 1947 के अंतर्गत मजदूरों को यह अधिकार दिया गया है कि वह अपने सही और उचित मांगों के लिए आंदोलन कर सकते है और मजदूर संघ बना सकते है।
न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948
न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 के तहत श्रमिक जीवन यापन के लिए योग्य बेतन की मांग कंपनी के मालिक से कर सकता है।
फैक्ट्रीज अधिनियम 1948
फैक्ट्रीज अधिनियम 1948 को फैक्ट्रीज में काम करने वाले श्रमिको की स्वास्थ्य की सुरक्षा व जीवन की सुरक्षा के लिए बनाया गया है।
राज्य कर्मचारी बीमा अधिनियम 1948
राज्य कर्मचारी बीमा अधिनियम 1948 के अंतर्गत मजदूरों का स्वास्थ्य संबंधी सुरक्षा किए जाने का प्रावधान है।
बाल मजदूरी (उन्मूलन एवं नियम) अधिनियम 1948
14 साल से कम उम्र के बच्चे बाल मजदूरी के श्रेणी में आते है | बाल मजदूरी (उन्मूलन एवं नियम) अधिनियम 1948 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को मजदूरी करने से रोकने के लिए बनाया गया है।
मातृत्व लाभ अधिनियम 1961
कुल मजदूरों की संख्या का 25 प्रतिशत भाग महिला मजदूरों का भी है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 को बनाया गया। इसके अंतर्गत महिला मजदूरों को गर्भावस्था के दौरान व उसके उपरान्त 80 दिनों की छुट्टी का प्रावधान किया गया है।
बोनस अधिनियम 1965
बोनस अधिनियम 1965 के अंतर्गत अवसर अनुकूल मजदूरों को बोनस देने का प्रावधान किया गया है।
बंधुआ मजदूरी प्रथा अधिनियम 1976
यह अधिनियम बंधुआ मजदूरी को समाप्त करने के लिए बनाया गया है।
असंगठित कामगार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम 2008
इस अधिनियम का गठन असंगठित मजदूरों के लिए किया गया है। इसके अंतर्गत स्वास्थ्य, मातृत्व, बुढ़ापा सुरक्षा व विकलांगता सम्बंधी लाभ का प्रावधान है।
जागरूकता ही एकमात्र आपका हथियार है। इसलिए आप ही को जागरूक होना पड़ेगा, ताकि मालिको द्वारा अपने लाभ को बढ़ाने के लिए ‘शोषण’ न कर सके।
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अंतराष्ट्रीय श्रमिक दिवस की शुभकामनाये एवं बधाई संदेश…
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nice articls
धन्यवाद Krunal जी ।
बहुत महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करायी है आपने.. धन्यवाद
धन्यवाद Avinash ji.
वाह बहुत ही अच्छा आपने मजदुर दिवस पर
बहुत ही अच्छा लेख आपने पर्काशित किया
Thanks Ajay ji.
मजदूर भी काम का अति महत्वपूर्ण हिस्सा है, अगर मजदूर ही न हो तो उनके बिना काम कैसे चलेगा, कौन करेगा काम? इसलिए इनकी सुरक्षाऔर सेहत भी बहुत जरूरी है।
लेकिन कई बार कर्मचारी भी मनमानी करने लग जाते है, जोकि बहुत गलत बात है। Organised sectors में कर्मचारी, कई बार बिन-मतलब strikes वगैरह करते है और मांगे भी ऐसी रख देते है जोकि पूरी हो ही न सकती है और Mills/Factories में ही तोड़-फोड़ , मतलब जिस थाली में खाना उसी में छेद करना।
मजदूरों/कर्मचारियों को उनके हक मिलना अच्छी बात है,लेकिन गलत किसी के साथ भी नही होना चाहिए, न मजदूर के साथ और न मालिक के साथ। अगर Employer उन्हें अच्छे से रख रहा है तो Employees को भी अच्छे से काम करना चाहिए।
आपने मजदूर दिवस के बारे में knowledgeable info share की ,धन्यवाद।
धन्यवाद Nikhil जी । मेरा भी यही मानना है कि मजदूर हो या कोई और सिर्फ जायज मांग को ही मानना चाहिए । इसलिए ही तो कई मजदूर अधिनियम बने है ताकि अराजक तत्वो को बढाना न मिल सके ।
Behtareen article
Thanks.