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भारतीय नारी कल और आज पर निबंध (Bhartiya Nari Aaj Aur Kal Essay In Hindi)

भारतीय नारी कल और आज पर निबंध – Bhartiya Nari Aaj Aur Kal Essay In Hindi Language

Bhartiya Nari Aaj Aur Kal Essay In Hindi
Bhartiya Nari Aaj Aur Kal Essay In Hindi

भारतीय नारी का विगत, वर्तमान और संभावित स्वरुप

Bhartiya Nari Aaj Aur Kal Essay In Hindi – भारतीय नारी की प्राचीन, वर्तमान और संभावित स्थिति के विषय पर बात करने से पहले हम  सब के लिए यह जानना बहुत जरुरी है कि सही मायने में नारी – सामर्थ्य क्या है ?

भारतीय नारी सामर्थ्य का यथार्थ

इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रकृति और पुरुष विधाता के दो विशिष्ट सृजन है और एक – दुसरें के पूरक है। एक के अभाव में आप दूसरे की कल्पना भी नहीं कर सकते। लेकिन अनेक समानताओं के होते हुए भी नर – नारी सामर्थ्य और सक्रियता के क्षेत्र कई संदर्भों में भिन्न – भिन्न है।

भारतीय समाज में जहाँ पुरूषों को पौरुष, श्रम, कठोरता, बर्बरता और अधीरता का प्रतिमूर्ति माना गया है वही नारी को त्याग, दया, करुणा, ममता और धैर्य की प्रतिमूर्ति कहा जाता है।

कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द्र जी ने भी अपने प्रसिद्ध उपन्यास गोदान में यह उक्ति कही है कि “ पुरुष में नारी के गुण आ जाते है तो वह महात्मा बन जाता है लेकिन नारी में पुरुष के गुण आ जाते है तो वह कुलता हो जाती है।”

यथार्थ नारी की स्वीकृति को ही दर्शाते हुए जयशंकर प्रसाद जी ने अपनी कामायनी में लिखा है –

नारी तुम केवल श्रध्दा हो, विश्वास रजत नग पद तल में।

पीयूष स्रोत – सी बहा करों, जीवन के सुंदर समतल में।।

भारतीय नारी अपनी इसी विशेषता की वजह से न जाने कितने रिश्तों का निर्वाह किया करती है। बेटी के रूप में जन्म लेकर जीवन आरंभ करने वाली नारी किसी की बहन, किसी की पत्नी, और किसी की माँ होती है।

इतिहास गवाह है कि भारतीय नारी पुरुष को प्रतिष्ठा और उपलब्धि के सर्वोच्च शिखर पर आरूढ़ करने के लिए स्वयं को भी दाव पर लगा दिया करती है। नारी के इसी अभिनव व्यक्तित्व और कृतित्व को लक्ष्य कर कही गयी यह उक्ति एक सर्वमान्य सत्य बनकर स्थापित हो गई है कि प्रत्येक पुरुष के सफलता में एक स्त्री का हाथ होता है।

लेकिन विडम्बना देखिए नारी – सामर्थ पर सवाल हमेशा ही उठते रहे हैं। पर नारी को जो सम्मान (अवस्था) पुरातन भारतीय संस्कृति में प्राप्त था वह सम्मान वह अवस्था आज भी नारी को नहीं मिल सका है।

पुरातन भारतीय समाज में नारी की अवस्था

भारतीय संस्कृति में नारी को माता के पद पर प्रतिष्ठित किया गया है। नारी को देवी मानकर उसकी पूजा की जाती है। पुरातन भारतीय समाज में तो किसी पुरुष द्वारा पत्नी की अनुपस्थिति में किया जाने वाला धार्मिक अनुष्ठान सर्वथा अधूरा समझा जाता था। यही वजह है कि पत्नी के लिए धर्मपत्नी शब्द प्रचलित हुआ।

इस समय की तत्कालीन परिस्थियों में नारी को शिक्षा प्राप्त करने, अपना जीवन – साथी चुनने की स्वतंत्रता प्राप्त थी। ये घर की लक्ष्मी मानी जाती थी और इन्हें लगभग प्रत्येक दृष्टि से भरपूर सम्मान मिलता था। खुद को मिले सम्मान का परिचय इन्होंने अपने नारी – सामर्थ से प्रस्तुत किया।

कैकेयी जो रणभूमि में पति की सारथी बनी, गांधारी जिन्होंने अंधे पति के लिए जीवन – पर्यंत आँखों पर पट्टी बाँध ली, सीता जिन्होंने पति के साथ स्वेच्छा से वन – गमन किया या फिर शास्त्रार्थ के लिए पुरुषों को ललकारने वाली गार्गी / मैत्रेयी आदि आदर्श चरित्र नारियों का प्रंसग उल्लेखनीय हैं। नारी के प्रति ऐसी उदात्त अवधारणा समभवत: कही और देखने को नहीं मिलती है। लेकिन भारतीय परिवेश में नारी के प्रति सम्मान सर्वथा एक समान नहीं रहें। समय बीतने के साथ – साथ नारी को मिलने वाले भरपूर सम्मान का अवमूल्यन होना प्रारंभ हो गया।

मध्यकाल में भारतीय नारी की अवस्था

भारतीय परिवेश में मध्यकाल तक आते – आते नारी के सम्मान का अवमूल्यन शुरू गया। नारी को प्राप्त समस्त स्वतंत्रता छीन ली गयी। इस काल की राजनीतिक और सामाजिक विसंगतियों के मध्य नारी यतीम बनकर रह गयी।

मत्स्य – न्याय की परंपरा का अनुगमन करते हुए विजयी राजाओं ने हारे राजाओं को अन्य भेटों के साथ अपनी बेटी भी सौपने के लिए विवश कर दिया इतना ही नहीं हिन्दू परिवारों की धन – सम्पत्ति लूटने के साथ – साथ बहू – बेटियों का भी अपहरण करना शुरू कर दिया।

परिणाम स्वरुप बहू – बेटियों की रक्षा हेतु पर्दा – प्रथा, बाल – विवाह, सती – प्रथा, कन्या – वध, विधवा – प्रताड़ना, आदि तत्कालीन कुरीतियों ने जन्म ले लिया। विदेशियों के आक्रमण से स्थिति और भी भयावह हो गई। बहुविवाह और अनमेल विवाह जैसे भोगवादी मानसिकता का विकास कर नारी को प्राप्त समस्त स्वतंत्रता छीन ली गई।

दार्शनिक विचारधाराओं में नारी सामर्थ

नारी के मन में असुरक्षा की भावना लाने के जिम्मेदार कही न कही कुछ दार्शनिक की विचारधारा भी सम्लित है। जान स्टुवर्ट मिल, प्लेटो एवं मार्क्स आदि ने नारी को पुरुष के समकक्ष रखने का प्रयास किया लेकिन कुछ दार्शनिक जैसे अरस्तू, हिगेल, कान्ट, नीत्शे, आदि को स्त्री जाति की बौद्धिक और तार्किक क्षमता पर गहरा संदेह था। देकार्ते ने तो खुलकर कहा है कि स्त्री की तर्क क्षमता पुरुषों से कमजोर एवं दुर्बल होती है।

पुरातन में जो नारी पुरुषों की अर्धांगिनी थी उसे जाने – अनजाने ये दार्शनिकों ने दो भागों में बाँट दिया। इन दार्शनिकों ने नारी को संवेदनशील बताकर पुरुषों को उसकी सुरक्षा करने तक की दलील दे डाली। इन्होंने नारी के मन में उसी के अस्तित्व के प्रति असुरक्षा के बीज डाल दिए।

इसके बाद तो नारी को उसके मौलिक अधिकारों से वंचित करने, विरोध करने में नारीवादीरूपी अनेक विचारधाराओं का जन्म हुआ। जिसमें उदार नारीवाद, मार्क्सवादी नारीवाद, मनोविश्लेषक नारीवाद, अराजक नारीवाद, सामाजिक नारीवाद आदि उल्लेखनीय है। इन नारीवादी विचारकों के विचारों का असर भारतीय समाज पर भी पड़ा।

नारी उत्कर्ष का आरंभिक चरण

आधुनिक काल के आरंभ में देश की आजादी के लिए नारी जागरण के महत्व को समझा गया और इसी के निमित्त नारी को विभिन्न विसंगतियों से मुक्त करने का प्रयास शुरू किया गया। इसमें 1955 में पारित विशेष विवाह और विवाह विच्छेद कानून, 1956 में पारित हिन्दू उत्तराधिकार कानून, 1959 में पारित अंतरजातीय विवाह अधिनियम, 1961 में पारित दहेज़ निषेध कानून की वजह से नारी के उत्थान में सर्वथा अनुरूप एवं सुखद परिणाम देखने को मिले।

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1970 से 1980 तक अधिकतर नारीवाद आंदोलन स्त्री को पराधीनता की बेड़ियों से निकालने के लिए बनाए गए। इसमें कोई संदेह नहीं कि स्वतंत्रता – संग्राम हेतु नारी सामर्थ का सहयोग प्राप्त करने के लिए जो उसे अवसर प्रदान किया गया उन अपेक्षाओं की कसौटी पर नारी खरी उतरी। इसके बदले आजादी मिलने के बाद नारी को बौधानिक, धार्मिक, सामाजिक लगभग हर प्रकार की विसंगतियों से मुक्त कर दिया गया।

लेकिन आज विडम्बना देखिए आजादी के बाद जिस नारी को पराधीनता की सारी बेड़ियों से मुक्त कर दिया गया था उसे आज उपभोग की वस्तु मानकर बाजार में खड़ा कर दिया गया है। आर्थिक एवं प्रौद्योगिकी परिवर्तनों के बाद भी महिला हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है।

घरेलू हिंसा, acid attack , honour killing (सम्मान के लिए मौत के घाट उतरना), अपहरण, तथा पति द्वारा उत्पीडन आदि समाज में महिलाओं के लिए आम बात हो गई है। अगर हम भारतीय समाज की बात करें तो यह एक पुरुष प्रधान समाज है। हर जगह पुरुषों का ही वर्चस्व है। हमारे समाज में नारी को दोयम दरजा देकर उसे बताया जाता है कि उसका कार्य केवल बच्चे पैदा करना और घर सम्भालना है, परंतु महिलाएँ इस पुरुष प्रधान मान्यता को प्रारंभ से ही चुनौती देती आ रही है।

पुरातन उद्धरणों की बात करें तो गार्गी, अपाला और मैत्रेयी जैसी विदुषी नारियों ने पुरुषों को शस्त्रार्थ में, आधुनिक काल में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने रणभूमि में अग्रेजों को, महादेवी वर्मा और सुभद्रा कुमारी चौहान ने श्रेष्ठ साहित्य का सृजन करके, इंदिरा प्रियदर्शिनी ने देश को कुशल नेतृत्व प्रदान करके, प्रथम आइपीएस अधिकारी किरण वेदी कठोर प्रशासकीय दायित्वों का सकुशल निर्वहण करके, मदर टरेसा ने अनाथों को गले लगाकर और कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स ने आकाश की ऊचाईयों को छूकर नारी – सामर्थ का अभिनव परिचय प्रस्तुत किया।

मध्यकाल में जिस नारी से उसकी सारी स्वतंत्रता छीन ली गयी थी आज वही नारी पुरुषों के एकछत्र साम्राज्य के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। आकड़े बताते है कि नारी किसी एक क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ रही बल्कि हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है।

आज से कुछ साल पहले जिन खेलों में नारियों को कमजोर बताकर उन्हें खेलने से रोका जाता था आज उन्ही खेलों में मेरी कॉम ने सफलता का परचम लहराकर देश का नाम रोशन किया। गीता फोगाट, पीवी सिंधु, सानिया मिर्जा, सायना नेहवाल साक्षी मलिक आदि जैसी महिलाए खेल जगत की गौरवपूर्ण पहचान है तो प्रियंका चोपड़ा, एश्वर्या राय, सुष्मिता सेन लारा दत्ता आदि महिलाओं ने सौन्दर्य प्रतियोगिता जीतकर अन्तराष्ट्रीय मंच पर भारत का नाम रौशन किया।

वर्तमान समय को अगर हम नारी उत्कर्ष की सदी कहे तो गलत नहीं होगा। आज की भारतीय नारी लगातार हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है। आधुनिक नारी कुरीतियों की बेड़ियों से निकलकर अपने भाग्य की निर्माता स्वयं बन रही है और विधाता ने भी उसे मुक्तिदूत बनने का गरिमापूर्ण दायित्व सौप दिया है।लेकिन अभी भी भारतीय नारी को अपना खोया हुआ आत्मसम्मान पाने में कुछ समय अवश्य लगेगा, परन्तु संभावनाएँ स्पष्ट है। 

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24 thoughts on “भारतीय नारी कल और आज पर निबंध (Bhartiya Nari Aaj Aur Kal Essay In Hindi)

  1. बबिता जी आपने महिल दिवस पर बहुत ही सुन्दर लेख लिखा है,इसके लिए आपको बहुत – बहुत धन्यवाद , यह लेख सभी लोगों के लिए प्रेरणादायक है, नारी हो या पुरुष सभी को सामान अधिकार मिलना चाहिए । लेकिन ऐसा नहीं होता है, अभी भी बहुत से जगह पर नारी को सम्मान व अधिकार नहीं मिलता है, वह अपने अधिकार व सम्मान के लिए संघर्ष कर रही है, बबिता जी आपने सही लिखा है,कि महिला किसी एक क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ रही है बल्कि सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ रही है नारी के सामान अधिकार के लिए सभी को मिलकर प्रयास करना होगा ,महिला दिवस पर आप सभी को बहुत- बहुत बधाई हो।

  2. बबिता, ‘नारी का विगत, वर्तमान और संभावित स्वरूप’ पर बहुत अच्छे से तथ्यात्मक विश्लेषन किया है आपने। सुंदर प्रस्तुति।

  3. महिला दिवस पर आप सभी की हार्दिक शुभकामनाये, इस संसार में हर स्त्री कही भी अबला न रहे और न ही अबला कहाए यही हम सबका प्रयाश होना चाहिए

  4. बबिता जी आपने “नारी की दशा- पहले और अब” इस पर बखूबी लेख लिखा और हर एक पहलू को बहुत ही अच्छे से व्यक्त किया है।

    जैसा कि आपने बताया है कि पहले समय में भारतीय नारी को दशा बहुत ही अच्छी थी और उसे हर एक अधिकार प्राप्त था और बाद में मुगलों और अंग्रेजों के शाषण के बाद यह दशा दुर्दशा में बदल गयी और जैसा आपने बताया कि दुर्दशा को कुछ दार्शनिकों ने भी और बढ़ावा दिया तो इससे यह बिलकुल स्पष्ट है कि कोई भी विदेशी धारणा भारतीय मूल संस्कारों को नहीं समझ सकती।

    हम भारतीयों के संस्कार (सही और पीढ़ियों से चलते आ रहे अच्छे संस्कार) हमे मनुष्यता ही सिखाते है और किसी भी संस्कार में किसी का तिरस्कार नहीं बताया गया (अगर सही अर्थों में पढ़ा और समझा जाए)।

    तो मैं सिर्फ एक ही बात कहनी चाहूंगा कि हमारे पतन के पीछे (चाहे स्त्री हो या पुरुष) सिर्फ हमारा दूसरी सभ्यताओं की तरफ आकर्षण ही रहा है। बाहरली सभ्यता से भले ही आधुनिक भारत को थोड़ा-बहुत सीखने को मिला हो, लेकिन हम यह भूल गए हमने जो भी बाहर से सीखा वह असल में हमारे ग्रंथों में सदियों से लिखा हुआ था और हम उन्हें भूलकर दूसरों से आकर्षित हुए |

    स्त्री हो या पुरुष….. जो भी हो, भारतीय सभ्यता को जाने, माने और अमल करे तो कोई भी गलत कभी हो ही नहीं सकता। (अगर संस्कारों का सही अर्थ मालुम हो तो)।

    अंत में इतना ही, हम जैसे पहले थे, कुछ फिर से अगर वैसे ही बन जाए तो नारी फिर से सर्वश्रेष्ठ होगी और भारत फिर से विश्व गुरु। जरूरत है हमे सच्चाई जानने की और modernisation की चकाचौंध से निकलने की।

    1. धन्यवाद Nikhil जी । आप ने बिल्कुल सही कहा हमारी संस्कृति में स्त्री और पुरुष को एक समान सम्मान प्राप्त था| पर नारी को जो सम्मान पुरातन भारतीय संस्कृति में प्राप्त था वह सम्मान आज भी नारी को नहीं मिल सका है | पाश्चात्य शैली को अपनाना मेरे अनुसार से गलत नही है क्योंकि पाश्चात्य शैली को अनदेखा कर दें तो हम बहुत पीछे छूट जाएंगे । जरुरत हैं तो अच्छे संस्कार और नैतिकता के विकास की ।

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