महाशिवरात्रि की कथा

Mahashivratri : महाशिवरात्रि फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भगवान शंकर और उनकी अर्धांगिनी पार्वती के विवाहोत्सव के शुभ दिन पर मनाया जाने वाला एक यादगार त्यौहार है।
हिन्दू धर्म के अनेक पर्वों में से यह एक बेहद पवित्र और महान पर्व है। शिव का अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत होने से यह महाशिवरात्रि कहलाती है। इस पर्व को शिवतेरस भी कहते है। यह पर्व सम्पूर्ण भारत के साथ – साथ नेपाल और मारीशस में भी धूमधाम से मनाया जाता है।
हमारे देश में भगवान शिव के चौदह ज्योतिर्यलिंग है और महाशिवरात्रि के दिन इन सभी मंदिरों में ज्योतिर्यलिंग की पूजा – अर्चना की जाती है। ईशान संहिता में इस बात का उल्लेख मिलता है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की अर्धरात्रि में भगवान शिव लिंग के रूप में अवतरित हुए थे। शिव के निराकार ब्रह्म स्वरूप का प्रतीक शिवलिंग का चतुर्दशी तिथि के महानिशीथ काल में आविर्भाव होने से इस तिथि को महाशिवरात्रि के पर्व के रूप में मनाया जाता है।
भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए सभी भक्त गण बड़े श्रद्धा भाव से इस दिन व्रत रखते हैं तथा बेलपत्र, फूल आदि शिवलिंग पर चढाते है। इस दिन भोले भंडारी के शिवलिंग को जल व कच्चे दूध से स्नान करवाया जाता है।
हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि शिवरात्रि व्रत को करने से सब पापों का नाश हो जाता है। हिंसक प्रव्रत्ति बदल जाती है। निरीह जीवों के प्रति दया भाव उपज जाता है। इस दिन जागरण करने का विशेष महत्व है। ईशान संहिता में इसकी महत्ता का उल्लेख इस प्रकार किया गया है –
शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपाप प्रणाशनम |
आचाण्डाल मनुष्याणां भुक्ति मुक्ति प्रदायकं ||

इस दिन सभी वर्ग के लोग बड़े, बूढ़ें, बच्चें और महिलाएँ सभी व्रत रखते है तथा भगवान शिव की उपासना कर उनसे अपने और अपने परिवार के लोगों के लिए सुख – शन्ति और समृद्धि की प्रार्थना करते है।
इस दिन श्रद्धालूगण शिव मंदिरों में जाते है और भोले भंडारी की पूजा – अर्चना करते है। इस दिन उज्जैन के मंदिरों में भगवान शिव की बहुत बड़ी झाँकी निकलती है जिसमे भोले भंडारी को विभिन्न मुद्राओं में दिखाया जाता है। इनके विभिन्न रूपों की महिमा का वर्णन भजनों द्वारा किया जाता है। इस दिन नाग देवता को खूब दूध पिलाया जाता है।
तो आइये! जिन्हें जन्म-जन्मान्तर से आप पूजते आये, माँगते आये, अब उनकी कुछ आवश्यक सामग्री और पूजा विधि के बारे बताते हैं। यह पूजन विधि जितनी आसान है उससे कही अधिक फलदायी है अगर इस विधि को आप ध्यान से पढे और इसी के अनुसार पूजा करे तो आप की हर एक मनोकामना भोलेनाथ अवश्य पूरी करेंगे।
Mahashivratri Pooja Vidhi in Hindi
सुबह सबसे पहले स्नानादि करे। उसके पश्चात शिवलिंग की पूजा – अर्चना करें और पूरे दिन व्रत रखने का संकल्प लें। व्रत के दौरान केवल गंगाजल और दुग्धाहार ही ग्रहण करें। लेकिन उससे पहले पूजा के स्थान को पत्र-पुष्प तथा वस्त्रों से मंडप तैयार करके सर्वतोभद्र की वेदी पर कलश की स्थापना के साथ-साथ, गौरी शंकर की स्वर्ण मूर्ति तथा नन्दी की चाँदी की मूर्ति रखनी चाहिए। यदि इन मूर्तियों का प्रबन्ध नहीं हो सके तो शुद्ध मिट्टी से शिवलिंग बना लेना चाहिए। कलश को जल से भरकर रोली, मोली, चावल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, चन्दन, दूध, घी, धतूरा, बेलपत्र, अकौआ आदि का प्रसाद शिव को अर्पित करके ही पूजा करनी चाहिए।
रात को शिव की स्तुति का जागरण करके ब्राह्मणों से पाठ कराना चाहिए। इस जागरण में चार बार शिवजी की आरती का विधान बेहद जरुरी है। इस अवसर पर रुडाष्ट्रा – ध्यायी, शिवपुराण, शिवमहिम्मरस्त्रोत आदि पाठ का विधान मंगलकारी है।
इस दिन रूद्राभिषेक करना बहुत फलदायक होता है। महाशिवरात्रि के दूसरें दिन प्रातः 108 आहुतियां त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धितम मंत्र का जाप करने के तत्पश्चात हवन करके ब्राह्मणों को भोजन करवाकर व्रत को पारना चाहिए। इस विधान से स्वच्छ भाव से जो भी इस व्रत को करता है भगवान शिव उस पर द्रवित होकर अपार सुख-सम्पदा प्रदान करते हैं।
भगवान शंकर पर चढ़ाया गया नैवेद्य खाना निषिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि जो इस नैवेद्य को खा लेता है वह नरक के दुःखों का भोग करता है। इस कष्ट के निवारण के लिए शिव की मूर्ति के पास शालिग्राम की मूर्ति का रखना अनिवार्य है। यदि शिव की मूर्ति के पास शालिग्राम की मूर्ति होगी तो नैवेद्य खाने का कोई दोष नहीं हैं।
महाशिवरात्रि के पुण्य क्षणों में सम्पूर्ण रीति से उपवास करते हुए महेश्वर महाकाल का पूजन भक्तों को उनका मनोवांछित फल देने वाला है। इसीलिए इसे आत्मा को पुनीत करने का महाव्रत भी कहते है। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस रात उर्जा की एक शक्तिशाली प्राकृतिक लहर बहती है। इसे भौतिक और अध्यात्मिक रूप से लाभकारी माना जाता है । जो लोग स्वेच्छा से सायुज्यता के लिए इस व्रत को करते हैं, वे निश्चय रूप से स्वर्ग को प्राप्त होते है।
महाशिवरात्रि की कथा
जब देवताओं और असुरों के सहयोग से समुन्द्र मंथन् हो रहा था उस मंथन से 14 रत्न प्राप्त हुए। उन रत्नों में से एक हलाहल भी था। हलाहल की गर्मी से सभी देव – दानव त्रस्त होने लगे. कोई भी उसे पीने के लिए तैयार नहीं था। तब शिव जी ने लोक – कल्याण की भावना से उस हलाहल का पान किया। इसीलिए भगवान शिव को महादेव भी कहा जाता है। जब महादेव ने हलाहल को अपने कंठ के पास रख लिया तो उनका कंठ नीला हो गया। अत: भगवान शिव शंकर को नीलकंठ भी कहते है।
महाशिवरात्रि कथा का रहस्य
एक बार शिव जी पार्वतीजी के साथ कैलाश पर्वत पर बैठे हुए थे। पार्वती जी को विचारमग्न देखकर शिवजी ने प्रश्न किया कि आप क्या सोच रही है ? तब पार्वतीजी ने कहा “क्या कोई ऐसा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत व पूजन विधि है जिसको करने से मृत्युलोक के प्राणी आपके धाम को सहज ही प्राप्त कर सके ?” इसी सिलसिले में शिव जी ने उन्हें यह महाशिवरात्रि व्रत की पवित्र कथा सुनाई –
महाशिवरात्रि व्रत कथा का प्रसंग – प्रत्याना नामक स्थान पर एक शिकारी रहता था। वह जीवों को मारकर या जीवित बेचकर अपने कुटुम्ब का भरण – पोषण करता था। उसने नगर के एक साहूकार से कुछ धन उधार लिया था। लेकिन उचित समय पर धन न लौटा सकने के कारण साहूकार ने शिकारी को एक शिव मठ में कैद कर दिया।
संयोग से उस दिन फाल्गुन मास की त्रयोदशी थी। उस दिन वहाँ रातभर शिव जी की पूजा – अर्चना तथा महाशिवरात्रि की कथा हो रही थी। शिकारी ध्यानमग्र होकर व्रत कथा सुनता रहा। दुसरें दिन चतुर्दशी था। उस दिन भी शिकारी ने कथा को सुना। संध्या होने पर साहूकार ने शिकारी को अपने पास बुलाया और इस शर्त पर छोड़ दिया कि वह उसके पैसे जल्द से जल्द लौटा देगा।
रात काफी हो चली थी और शिकारी ने पुरे दिन से कुछ नहीं खाया – पीया था. लेकिन वह अपनी दिनचर्या की भांति शिकार पर निकल पड़ा। उसने नदी के तीर पर बैठकर शिकार करने के बारे में सोचा क्योंकि वहां रात्रि में जानवर पानी पीने के लिए आते थे। उसने नदी के किनारे एक बेलपत्र के पेड़ पर अपनी मचान बनाई।
उस पेड़ के नीचे एक शिवलिंग था जो कि विल्वपत्रों से ढका हुआ था जिसके कारण शिकारी की नजर शिवलिंग पर नहीं पड़ी। पेड़ पर छिपकर शिकार करने के लिए पड़ाव बनाते वक्त उसने जो टहनियां तोड़ी, संयोग से वे शिवलिंग पर गिरि। भूख – प्यास से व्याकुल तो वह पहले से ही था।इससे जाने अनजाने उसने पूजा भी कर ली और महाशिवरात्रि व्रत भी कर लिया।

एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भवती हिरणी नदी पर पानी पीने के लिए पहुंची। शिकारी ने जैसे ही धनुष पर तीर चढ़ाकर प्रत्यंचा खींची, हिरणी कातर स्वर में गुहार करने लगी कि ‘मैं गर्भवती हूँ और जल्द ही प्रसव करूंगी। तुम मेरे साथ – साथ मेरे बच्चें की हत्या मत करों. मुझें थोड़ा वक्त दो, मैं बच्चें को जन्म देकर तुम्हारें समकक्ष खुद ही प्रस्तुत हो जाऊँगी।’ शिकारी ने अपनी प्रत्यंचा ढ़ीली कर दी और हिरणी वहाँ से चली गई।
दूसरें पहर रात्रि बीत जाने पर एक दूसरी हिरणी आई। शिकारी उसे देखकर बहुत प्रसन्न हुआ और जैसे ही हिरणी नदी के समीप पहुंची उसने एक बार फिर धनुष पर बाड़ चढ़ाया। उसे देख हिरणी विनम्रतापूर्वक निवेदन करने लगी । ‘मेरा विवाह अभी – अभी हुआ है और मैं अपने पति के पास नहीं गई हूँ। मैं एक कामातुर हिरणी हूँ। मुझें अभी अभी जाने दीजिए। अपने प्रिय से मिलकर मैं स्वयं ही आ जाऊँगी.’ शिकारी ने उसे भी छोड़ दिया. लेकिन शिकारी को अब चिंता होने लगी. रात्रि के दो पहर बीत चुके थे लेकिन उसे अभी तक कोई जानवर नहीं मिल पाया था।
तीसरे पहर में फिर एक हिरणी अपने बच्चे के साथ आई. इस बार शिकारी ने धनुष पर बाड़ चढ़ाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। हिरणी प्रार्थना करने लगी “हे शिकारी ! मेरे बच्चे अभी बहुत छोटे है। मुझें अभी जाने दीजिए। मैं इन बच्चों को इनके पिता को सौप कर स्वयं ही आपके पास आ जाऊँगी।” हिरणी का दीन स्वर सुन कर शिकारी ने उसे भी जाने दिया।
चौथे पहर बीतने को था. शिकारी अपने मन में ठान लिया इस बार जो भी आए वह उसे छोड़ेगा नहीं। कुछ ही देर बाद एक हृष्ट – पुष्ट हिरण आया। बिना किसी विलम्ब के शिकारी ने अपनी प्रत्यंचा हिरण पर तान दी। यह देख हिरण विनीत स्वर में बोला “हे पारधी ! क्या आपने मुझसे पूर्व आने वाली तीनों हिरनियों व उनके छोटे – छोटे बच्चों को मार डाला है ? अगर ऐसा है तो मुझें भी मारने में विलम्ब ना करों। अगर मैं जीवित रहा तो भी उनके वियोग में मर जाऊंगा. मैं उनका पति हूँ। अगर तुमने उनकी हत्या नहीं की है तो मुझें भी कुछ क्षण का जीवन दान में दे दो। मैं उन्हें सकुशल देखकर तुम्हारें समकक्ष स्वयं प्रस्तुत हो जाऊंगा।”
हिरण की बात सुनकर शिकारी ने दया कर के उसे भी छोड़ दिया. सुबह जब शिकारी पेड़ से निचे उतरने लगा तो कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर और गिर गए। इस पुरे घटनाक्रम से शिकारी का ह्रदय एकदम पवित्र और निर्मल हो गया। भगवान भोलेनाथ के आशीर्वाद से उसका ह्रदय इतना कोमल हो गया कि वह अपने पुराने कर्मो को याद करके पछताने लगा। तब तक हिरण और तीनों हिरणी अपने वचन के अनुसार वहां आ गए। उन्हें अपने वचन का पालन करते देख उसका ह्रदय कोमलता से भर उठा और वह फूट फूट कर रोने लगा। भगवान शंकर ने यह देखकर सभी को मोक्ष प्रदान कर दिया।
इस तरह महाशिवरात्रि व्रत कथा की गाथा और महिमा निराली है। मोक्ष की भावना से ही भक्त इस महाशिवरात्रि व्रत को रखते है। पुराणों और शास्त्रों के अनुसार जो मनुष्य महाशिवरात्रि व्रत कथा को सुनता है और विधि विधान से व्रत रखता है उसे आनंद और मोक्ष की प्राप्ति होती है. यह अपनी आत्मा को पुनीत करने का महा लाभदायक त्योहार है।
जय महाकाल – Mahakal Status in Hindi
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं
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Nice post.