बुराई पर अच्छाई की जीत की प्रेरक हिंदी कहानी (Burai Par Acchai Ki Jeet Inspirational Story In Hindi)

प्रबुद्ध नाम का बटेर था जो कि स्वभाव से बड़ा दयालु और परोपकारी था | वह हर एक जीव को अपने समान ही मानता है और इसलिए कभी किसी कीट – पतंग को मारकर अपना भोजन नहीं बनाता था तथा दूसरे पशु – पक्षियों को भी ऐसा करने से मना किया करता था |
वह प्रतिदिन पक्षियों को उपदेश भी देता था कि किसी जीव – जंतु को मारकर पेट भरना अच्छा नहीं है | ईश्वर ने पेट भरने के लिए तरह – तरह के फल और अनाज दिए है तो क्यों न हम उनसे अपना पेट भरे |
बटेर का उपदेश दूसरे पक्षियों को तो बहुत अच्छा लगता था, पर चील को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था | वह मन ही मन बटेर से जला करती थी और उसको नुकसान पहुचाने की दृष्टि से बाकि पक्षियों से उसकी बुराई किया करती थी |
बटेर जानता था कि चील उससे जलती है और उसके विरुद्ध पक्षियों को भड़काती है | किन्तु फिर भी वह उसकी बातों का बुरा नहीं मानता था और न ही अच्छाई का साथ छोड़ता |
एक दिन दोपहर के समय सभी पक्षी दाने – चारे के लिए बाहर चले गए | घोसले में केवल उनके अंडे और छोटे – छोटे बच्चे रह गए थे | उस वक्त बटेर भी अपने घोंसले में आराम कर रहा था | तभी सहसा उसके कानों में चीखने और चिल्लाने की आवाज सुनाई पड़ी | वह तुरंत अपने घोंसले से बाहर निकला और इधर – उधर देखने लगा |
वह यह देखकर स्तब्ध हो गया कि चील के घोंसले की ओर धीरे – धीरे एक काला साप बढ़ रहा है | बच्चे उसी को देखकर चीख – चिल्ला रहे है |
बटेर तीव्र गति से उड़कर नाग के पास जा पहुंचा और बोला, “अपनी कुशलता चाहते हो तो भाग जाओ ! अगर घोंसले के अंदर घुसने की कोशिश की तो मैं शोर मचा दूंगा और तब तुम्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ सकता है |”
नाग ने उत्तर दिया, “चील तुम्हारे साथ इतना बुरा व्यवहार करती है फिर भी तुम उसके बच्चों की रक्षा कर रहे हो | जाओं तूप आराम करों | मुझे चील के बच्चों को खाने दो क्योंकि चील बड़ी दुष्ट प्रकृति की है |”
बटेर ने कहा, “चील मेरी बुराई चाहती है तो चाहने दो लेकिन मैं तो केवल भला करना चाहता हूँ | चील अपना काम करती है, और मैं अपना काम करूँगा | मेरे रहते तुम चील के बच्चों को नहीं खा सकते | इसके लिए मुझे अपने प्राण ही क्यों न देने पड़े, पर मैं चील के बच्चों की रक्षा अवश्य करूँगा |
बटेर की बात सुनकर नाग क्रुद्ध हो उठा | वह फुफकारता हुआ बोला, “ मुझसे बैर मोल ले रहे हो, तुम्हे पछताना पड़ सकता है | एक बार फिर सोच लो |”
बटेर ने उत्तर दिया, “सोच लिया है | बहुत करोगो, काट ही लोगो न | मरना तो एक दिन है ही ! अच्छा है, बुराई को मार कर मरू | तुम्हें जो कुछ करना है कर लेना मगर मैं तुम्हे चील के बच्चों को खाने नहीं दूंगा |”
हार मानकार नाग को वहां से जाना पड़ा | संध्या होने पर जब चील अपने घोंसले में वापस लौटी तो उसके बच्चों ने बटेर की बड़ी प्रसंशा करते हुए बोले अगर आज बटेर चाचा न होते तो दुष्ट नाग हम लोगों को निगल जाता |
अपने बच्चों के मुंह से बटेर की तारीफ सुनकर चील क्रुद्ध हो बोली उसकी इतनी हिम्मत कि वह मेरे घोंसले तक आ पहुंचा | मैं उस बटेर से इसका बदला ले कर रहूंगी |
चील कई दिनों तक मन – ही – मन सोच विचार करती रही | आखिर उसे बटेर से बदला लेने का एक उपाय सूझा कि क्यों न गिद्ध को ही बटेर के खिलाफ भड़का दे तो वह जरुर मेरी मदद करेगा |
चील एक दिन गिद्ध के घर गई और थोड़ी देर इधर – उधर की बाते करने के बाद बोली – हे गिद्धराज ! बटेर इस तरह का प्रचार कर रहा है कि किसी को भी जीव की हत्या नहीं करनी चाहिए | लेकिन महाराज अगर उसका प्रचार सफल हो गया तो आपको भूखा मरना पड़ेगा | क्योंकि जीवों को मारे बिना आप का काम नहीं चल सकता |
चील की बात सुनकर गिद्ध आवेश में आ गया और बोला, “अच्छा बटेर ऐसा कहता है तब तो उसका प्रबंध करना ही पड़ेगा |”
चील और गिद्ध ने बटेर को मार डालने का निश्चय किया | दोनों ने तय किया कि कल अर्धरात्रि में जब सभी पक्षी सोते रहेंगे, तो वे दोनों बटेर के घोंसले पर हमला कर उसे मार देंगे |
दूसरे दिन अर्धरात्रि को जब सभी पक्षी अपने – अपने घोंसले में सो रहे थे तब गिद्ध और चील दबे पांव बटेर के घोंसले के पास जा पहुंचे | दोनों ने बड़े आश्चर्य के साथ देखा कि उनसे पहले ही एक काला नाग धीरे – धीरे बटेर के घोंसले की ओर बढ़ रहा था | यह वही काला नाग था जिसे बटेर ने चील के बच्चों को खाने से रोका था | संयोग की बात, वह भी उसी वक्त बटेर से बदला लेने के लिए आया था |
चुकि चील, गिद्ध और नाग की पहले से ही शत्रुता है | अत: जैसे ही उन्होंने एक दूसरे को देखा तो बटेर को हानि पहुंचना भूल गए और तीनों आपस में ही लड़ने लगे |
तीनों की चीख – पुकार सुनकर सभी पक्षी अपने – अपने घोंसले से बाहर आ गए | लड़ाई इतना भयंकर था कि कोई भी उन्हें बचा न सका और तीनो आपस में लड़कर मर गए |
Moral of the story on “Burai par acchai ki jeet”
इस कहानी से सीख मिलती है कि बुराई चाहे कितनी ही प्रबल क्यों न हो अंत में जीत सदैव अच्छाई की ही होती है | बटेर सच्चा था, इसलिए उसकी जीत निशचित थी और दूसरी तरह चील कपटी थी, बुराई उसकी फितरत में थी, तभी तो उसे बटेर की अच्छाई उसे नजर नहीं आई और परिणाम स्वरुप उसको अपनी जान से हाथ धोना पड़ा |
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Very great Story. Aise hi likhti rahe.
bahut achhi kahani hai.
Bahut accha sandesh hai.
Nice… Thank You so much and for you all the best. That Is great job.
Good Story.. Keep writing !!
बहुत ही प्रेरक स्टोरी है धन्यवाद
Thanks Babita ji aap ne yah post bhut hi achha likha hai
Dhanyawad.
आपको लेख पसंद आया उसके लिए धन्यवाद |
Bhut hi achi story hai
Dhanyawad. Keep reading.
absolutely right ….
Thanks Upma ji.