
आलोचना को ज्यादातर नकारात्मक भावना के अर्थ में लिया जाता है। लेकिन सच तो ये है कि यह हमारे लिए किसी न किसी रूप में फायदेमंद होती है। इससे हमें अपनी खामियों का पता चलता है, जिन्हें समय रहते दूर करके हम अपनी performance सुधार कर आगे बढ़ सकते है। लेकिन व्यक्ति को हमेशा यही लगता है कि वो जो कर रहा बिल्कुल सही कर रहा है पर लोग भूल जाते है कि गलती तो इंसान से ही होती है। अगर कोई हमें हमारी खामियों का अहसास कराएं तो इसमे बुराई ही क्या है ? पर आलम यह होता है कि जो व्यक्ति ईमानदारी से हमारी आलोचना करता है हम उसी से मुहं फुला लेते है।
आलोचना का सामना कैसे करे(Aalochna in hindi)
“आलोचना” यह एक बहुत उलझा हुआ सवाल है ! यह बात बोलने में जितनी आसान लग रही है उतना है नहीं क्योंकि जब कोई हमारी या हमारे काम को criticize करता है तब चिढ़ तो होती ही है, हम दुखी भी होते है। कभी – कभी तो हम कमियाँ बताने वाले को अपना दुश्मन ही समझने लगते है लेकिन आलोचकों से आप कहाँ तक भागेंगे। स्कूल कॉलेज ऑफिस हर कही आपका पाला ऐसे लोगों से पड़ ही जाता होगा। इसलिए क्रिटिसिज्म को सहन कर उसे स्वस्थ भावना में बदलने के कुछ तरीके मैं आप से शेयर कर रही हूँ।
5 Best tips आलोचना का सामना करने के लिए
(1)स्वस्थ भावना समझकर सुधार करें
साधारण सी बात जब कोई व्यक्ति आपके के किए किसी भी कार्य की नकारात्मक प्रतिक्रिया देता है तो आप को अच्छा नहीं लगता है। यह भी सच है हर व्यक्ति को घर, ऑफिस, स्कूल कही भी कभी न कभी ‘कुछ खास नहीं’ की टिप्पणी जरुर मिली होगी क्योंकि हैं तो हम सामाजिक प्राणी और जिस समाज में रहते हैं उस समाज में खामियां गिनाने वालों का कमी नहीं है लेकिन अच्छा यही होगा कि आलोचना को स्वस्थ भावना के साथ स्वीकार करके आप अपने कार्य में सुधार करने की आदत डालें।
(2)आलोचक की बात सावधानी से सुनें
कई बार ऐसा होता है जब कोई हमें कुछ कहता है तो हम उसकी कही बातों को ध्यान से नहीं सुनते है और अपनी प्रतिक्रिया देना शुरू कर देते है या फिर बुरा मान जाते है। यह परेशान होने की एक बड़ी वजह बन जाती है। जैसे कि ऑफिस में बॉस को ही ले लीजिए यदि वह किसी काम में इम्प्रूवमेंट की बात करते है तो लोग उसे सुनना ही नहीं चाहते और उसे कुछ न कुछ जबाब देने के बारे में सोचना शुरु कर देते है। इससे मूल समस्या की उपेक्षा हो जाती है | जिससे गलती के दुबारा होने का खतरा बना रहता है। इसलिए सबसे पहले बात को सावधानी और सतर्कता से सुनें।
(3)भावुक होने की जरुरत नहीं
यदि कोई आपकी गलती या खामी की तरफ इंगित करता है तो इसे अन्यथा न लें बल्कि अपने दिमाग का इस्तेमाल करके ठीक से विश्लेषण करें। भावनाओं को हावी होने का मौका देंगे तो निष्पक्ष होकर अपने काम में सुधार नहीं कर पाएंगे। इसलिए मनोभावनाओं को काबू में रखें।
(4)किसी भी टिप्पणी पर अपना दृष्टिकोण अवश्य रखें
आलोचना सुनकर चुप न रहे लेकिन ऐसा भी न हो कि आप अपना जरुरत से ज्यादा बचाव करने लगें। अगर आलोचना पर लाजबाब हो जाएँगे तो आप का आत्मविश्वास डगमगा जाएगा और हो सकता है आपकी सहनशक्ति भी जाती रहें। इसलिए किसी भी आलोचना ( टिप्पणी ) को सुनने के बाद अपना दृष्टिकोण अवश्य सामने रखें, जरुरत हो तो और तफसील से जानकारी लें। इसके बाद सुधार का वादा करें।
(5)आलोचना को हमेशा के लिए अपने दिमाग में जगह देना ठीक नहीं
महात्मा गांधी जी ने कहा है मेरी आज्ञा के बिना कोई मुझे अपमानित नहीं कर सकता है। इसलिए आलोचना पर क्या करे यह सोचकर परेशान न हो और आलोचक के प्रति अपने अन्दर किसी भी प्रकार का खुंदक न पालें। आलोचना को शत्रुता बढ़ाने का मसला न बनाएं। इससे आप का ही मूड खराब होगा। जिसका असर आपके काम पर भी पड़ेगा जो आप के हित में नहीं होगा।
सबसे पहले तो यह समझ लें कि क्रिटिसिज्म एक प्रकार से आपकी मदद करता है कार्य को और अच्छे तरीके से करने में। यह सुनने में कडवी लग सकती है पर सच तो यही है, अच्छी बातों को अपनाने में कोई बुराई नहीं है। अच्छे विचारों पर अमल कर आप अपने काम को और बेहतर बना सकते है।
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बबिता जी, आलोचना किसी को भी अच्छी नही लगती है,लेकिन सहज भाव से आलोचना को सुनना एक अच्छे व्यक्तित्व को प्रस्तुत करता है। आपका लेख व्यक्ति के विकास में नई समझ उत्पन्न करता है।
नीरज
आलोचक ही तो सही बताता है, ज्यादातर वही हमारे कामो को सही रास्ता दिखता है।
धन्यवाद Deewakar जी |
GALTI USI SE HOTI HAI JO KUCH NYA KRNA CHAHTA HAI … ISLIYE KAHA BHI GYA BHI GYA HAI – NINDAK NIYRE RAKHIYE……….
Very well said.
बबिता जी,आलोचना उसी की होती है जो कुछ कार्य करता है। लोगो का काम है कहना…। सुन्दर प्रस्तुति।
धन्यवाद ज्योति जी |
आपका ये लेख पसंद आया.
"निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छबाय.."
धन्यवाद Anil ji.